इंसान सफल तब होता है, जब वो दुनिया को नहीं बल्कि खुद को बढ़ाना शुरू कर देता है।
इस अध्याय से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें पहले की हुई गलतियों को माफ करके आगे बढ़ना चाहिए। गलतियां हुई और होंगी, लेकिन हम उन गलतियों से भी अपने जीवन में बहुत कुछ सीखते हैं, और सीखे भी हैं। जैसे कि हमें इस अध्याय में बताया गया है कि जीवन में मुश्किलें आएंगी, लेकिन उनका सामना हमें कैसे करना है, यह हमें अच्छे से पता होना चाहिए। क्योंकि जीवन में गलतियां होती रहती हैं। नोबेल ने अपने प्रयोग जारी रखे और जेलीनाइट और बैलिस्टाइट का आविष्कार किया। एक समय था जब उनके नाम पर 355 पेटेंट थे। 1888 में उनके लुडविग की मृत्यु हो गई। और एक फ्रेंच अखबार ने गलती से एल्फ्रेड नोबेल के नाम का शोक संदेश प्रिंट कर दिया। अखबार में लिखा होता है, 'Le marchand de la mort est mort' का अर्थ है कि मौत के व्यापारी की मौत हो गई, जो पहले से ही लोगों को मारकर अमीर बन गया है। लेकिन जब उन्हें यह पता चला, तो इस बात का गहरा असर पड़ा कि लोग मेरे बारे में सोचते हैं। उनके विचार कैसे बदले जाएं। फिर उन्होंने अपनी आखिरी वसीयत लिखी, जिसमें उन्होंने अपने सारे धन का 94% पांच पुरस्कारों में स्थापित कर दिया।
असंभव कुछ भी नहीं है। जब जागो तब ही सवेरा।काम करो ऐसा की एक पहचान बन जाए
हर कदम ऐसा चलो की निशान बन जाए।
No comments:
Post a Comment