Monday, January 27, 2025

प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना - Arthur Foot Academy

Customised PLP Solutions for Schools 

Is Your Child Ready To Face The World, a bestselling book by Dr Anupam Sibal, a Learning Forward India Foundation board member. The Arthur Foot Academy customised Professional Learning Program is construted around book reading; the reachers meet every month to read a chapter and share their reflections.


In honour of Arthur Edward Foot's ideals, a dedicated group of Old Boys of The Doon School with Asad Khan leading have joined forces to create a lasting legacy for their first Headmaster, the Arthur Foot Academy. The academy is committed to providing a well-rounded education to the children of Bandarjhud, a small village near Dehradun. 


The Arthur Foot Academy, as a member of the Good Schools Alliance, is dedicated to fostering the personal and social development of each student. The academy emphasizes service, skill development, athletics, and academic study as core components of its educational approach. The mission of the school is to equip students with the confidence to navigate the world successfully. In January 2025, the academy hosted a Professional Learning Program (PLP) session, during which teachers demonstrated their enthusiasm for learning and shared insights into the joy of educational experiences.

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प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना इस पाठ के माध्यम से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें जीवन में कभी बहाने और किस्मत को दोष नहीं देना चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं तो यह हमारे जीवन की हार होती है। अगर मेरे पास पैसे होते तो मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेती। मेरे पास अगर बहुत ज्यादा पैसे हो तो मैं अपने जीवन में सफल हो जाती ज्यादा पैसा होने से मनुष्य की इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती इच्छा हमेशा बढ़ती ही जाती है जिससे जिससे हम खुश नहीं हो पाए क्योंकि इच्छा असीमित होती है जो कभी पूरी नहीं होती। जैसे हमारी लाइफ में प्रॉब्लम है तो हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए हमें उनका सामना करना चाहिए और हमारे जीवन का एकमात्र यही लक्ष्य होना चाहिए। जब माता-पिता बच्चों के सामने बहाने बनाते हैं और बच्चे उन्हें ऐसा करते देखे हैं तभी वह भी बहाने बनाने सीख जाते हैं और अपने कम से पीछे हट जाते हैं। और सिमी जिसने 2003 में एक क्लीनिक में एक मैनेजर के रूप काम करना शुरू किया जिसकी हंसी बहुत ही प्यारी थी और उसका व्यवहार सबको बहुत अच्छा लगता था। सिमी बहुत बीमार हुई उसने अपनी लाइफ में बहुत ही ज्यादा संघर्ष किया और परेशानियों का सामना किया उसकी बहुत सर्जरी हुई लेकिन उसने कभी किसी को यह महसूस नहीं होने दिया कि वह इतनी ज्यादा परेशानियों से गुजर रही है। और ना ही वह किसी की दया की पात्र बनना चाहती थी। ऐसे बहुत से उदाहरण है हमें भी अपने जीवन शैली में कभी घबराना नहीं चाहिए। उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए। दूसरों से अच्छी बातें सीखनी चाहिए। और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने चाहिए तभी हम अपने लक्ष्य की प्रति कर सकेंगे क्योंकि बहाने बनाने से कुछ नहीं होता है इससे हम वैदिक को देते हैं जो हमें पाना था । 

रीना 


पाठ में मैंने पढ़ा कि एक लड़की सिमी जो संधि शोध की बीमारी से पीड़ित होती हैं| तथा किस प्रकार उसने अपनी बिमारी को बहाना नहीं बनाया और इसी प्रकार संगीतकार बीथोवेन और स्टीवन स्पीलबर्ग, रूजवेल्ट, बॉबी के उदाहरण दिए गए है | इन सभी लोगों को देखकर हमको यही शिक्षा मिलती हैं। कि अगर हमको ईश्वर ने हाथ, पांव व देखने के लिए आँखें दी है। और हमारा शरीर बिल्कुल ठिक है। तो हम भी वह कर सकते हैं। जो हम चाहते है। लेकिन वह तभी संभव है। जब हम मेहनत करेंगे और हमारे पास कोई बहाना बनाने का समय न हो। जैसे कि पाठ में आया एक वाक्य "मैं सपने रात में नहीं दिन में देखता हूँ।" सपने दिन में देखने का मतलब हैं, की खुली आंखों से सपने देखना तथा ऐसे सपने जो आपको नींद ही न आने दे। इस प्रकार पाठ में मैंने यही सीखा की अगर हमें अपनी मंज़िल तक पहुंचना हैं। तो हमें हर परेशानी को स्वीकार करना होगा,और आगे बढ़ना होगा। क्योंकि कहते हैं की बिना संघर्ष किए कुछ प्राप्त नहीं होता।प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना वैसे तो सभी अपनी जिंदगी में किसी न किसी तरह से हर मुश्किल परिस्थितियों का सामना करते है और जिन्हे नहीं कुछ नहीं करना होता है तो बहुत से बहाने बनाकर अपने मन को शांत करने कि कोई करते है  जो इंसान प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना हिम्मत और लगन से कर सकते है तो उनकी जीत निश्चित है जैसे इस पाठ में मुझे स्ट्रटजमैन की कहानीअच्छी लगी जो बिना हाथों के भी सबसे लंबे सही निशाने के लिए गिनीज विश्व रिकॉर्ड बनाया क्योंकि देखा जाय तो बिना हाथों के इंसान कुछ भी नहीं है लेकिन उनकी कहानी पढ़कर ऐसा लगता है कि अगर इंसान चाहे तो कुछ भी मुश्किल नहीं है जब वे बिना हाथों के अपने सारे कार्य कर दिया है तो जैसे उन्होंने 2012 में लंदन के पैरालिंपि गेमज मैं उन्होंने तीरंदाजी में रजत पदक जीता अगर बिना हाथों के भी वे विश्व रिकॉर्ड बना सकते है तो दुनिया में परिश्रम करने वाले कभी हार नही सकते इसलिए हमें प्रतिकूल परिस्थितियों को देखकर कभी घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए फिर जीत निश्चित है

ललिता पाल

हमे अपने जीवन में हर प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।अपना लक्ष्य पाने के लिए हमें कठिन परिश्रम करने की आवश्यकता होती है।हमें खुद को कमजोर ना समझकर हर परिस्थिति का सामना करना चाहिए।सफल होने का आत्मविश्वास हमारे अन्दर चाहिए।जैसे पाठ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना। में हमनें पढ़ा हैं कि कैसे जीन डोमिनिक बॉबी जी का उदाहरण दिया गया है। की कैसे वह तैतालिस साल की उम्र में एक भयानक रूप से लकवा मार गया। और वह कोमा में चले गए। इन परिस्थितियों के बावजूद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कभी भी अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया। बल्कि हर परिस्थिति का सामना करते हुए। प्रसिद्ध पुस्तक थे डाइविंग बेल एंड द बटरफ्लाई नामक किताब लिखी। हमें इनसे प्रेरणा मिलती है कि हमें जीवन में हर परिस्थिति का काम करने का आत्मविश्वास हमारे अंदर होना चाहिए। अपने जीवन में किसी भी परिस्थिति को लेकर हार नहीं माननी चाहिए। बल्कि उसका सामना करना चाहिए।

स्वाति


हमें जिंदगी में मुश्किलों का सामना करना चाहिए ना कि उनसे हमें भागना चाहिए जैसे सिम्मी किशोर अवस्था मेथी जब उन्हें संधि शोथ की बीमारी हुई तो उनके जोड़ों में दर्द और जोड़ों में सूजन आती थी उन्होंने जोड़ों के सूजन के की दवाई ले रही थी तो उनकी हालत सही होने के बावजूद बिगड़ ने लगी 21 वर्ष की सिम्मी को घुटनों में इतना दर्द रहने लगा कि उनको प्रत्यारोपण करवाने की नौबत आ गई थी पर सीमी किशोर ने  कभी एहसास नहीं होने दिया कि उनको कोई परेशानी है वह सामने वालों को  खुश रखना ही उनकी आदत थी उन्होंने कभी बहाने नहीं बना कि मुझे यह दिक्कत या परेशानी है ऐसे ही हमें भी अगर बहानो। का ख्याल आए तो हमें सिम्मी की बहादुरी देखनी चाहिए उन्होंने कभी हार नहीं मानी ऐसे ही हमें मुश्किलों का सामना करना चाहिए ।

साक्षी खन्ना

समय और परिस्थितियाँ के प्रतिकुल होने पर हमें जीवन में, कब या किन परिस्थितियों में हमें बिना लड़े, हालत से समझौता कर लेना चाहिए या स्थिति को चुपचाप स्वीकार करना चाहिए? मैं शायद उन लोगों में से नही हूँ जो परिस्थितियों से लगातार लड़ते रहते है और न ही उन लोगों में से हूँ जो परिस्थितियों के सामने झुक जाते है ,उन्हें स्वीकार कर लेते है।

मेरा मानना है कि आपको हर परिस्थिति को पहले समझना होंगा ।उसके सही और गलत परिणामों पर विचार करना होंगा ।फिर आपको कब लड़ना है और कब झुकना है ये स्वयं ही समझ आ जायेगा। कभी कभी जीवन में भी लड़ना जरूरी   होता है और कभी कभी झुकना ।मैं यहां लड़ना नही बोलुंगा  बल्कि कोशिश करना बोलुंगा उस परिस्थिति में खुद को संभालने की।

जीवन ऐसा जिये कि कभी अपने किसी काम के लिए पछतावा न हो कि अगर ये कर लिया होता या फिर ये नही किया होता। परिस्थितियाँ सर्वशक्तिमान होती है लेकिन फिर भी वक़्त के साथ इनको भी बदलना पड़ता है । समय का हाथ पकड़ लो तो आप हर मुश्किल को आसान बना लेंगें।

मैं जब भी कभी किसी बदलाव को आते देखता हूँ तो पहले अपनी तरफ से हर सम्भव कोशिश कर्ता हूँ कि उस बदलाव के सभी पक्षों को स्पष्ट रूप से देख सकूँ और जहां तक बोलने या कुछ करने की जरूरत होती है तो कर्ता  हूँ और जब लगता है अपने हाथ में नही है ये स्थिति ,तो उसे ईश्वर पर इस विश्वास के साथ छोड़कर कि वो जरूर अच्छा ही करेंगे ,स्वयं को साक्षी के रूप में देखने की कोशिश करने मुझे लगता  हूँ।

अभी तक का अनुभव अच्छा ही रहा है । परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन बनी हो पर परिणाम हमेशा मेरे पक्ष में ही आये है।

देवानंद

पाठ  प्रतिकूल परिस्थितियों  का सामना करने से हमे यह शिक्षा मिलती है। यदि हमे अपने जीवन मे सफल होना है। हमने अपने जीवन मे जो लक्ष्य देखा है। उसे प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर प्रयास करना चाहिए। और हमें बहाने नहीं बनाने चाहिए की मेरे भाग्य ने साथ नहीं दिया और मैं अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाया।               

सपने वे नहीं होते जो हम नींद में देखते हैं। बल्कि सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते। वास्तविक जीवन में ऐसे बहुत से व्यक्तियों से इतिहास भरा पड़ा है जिन्होंने अजय लगने वाली विपरीत परिस्थितियों को जीत कर दिखाया है। सिमी सिंह जो एक क्लीनिक में मैनेजर थी लेकिन अधिक बीमार हो जाने के कारण तथा अपने पैरों पर खड़ा ना होने के कारण उन्होंने धैर्य नहीं  खोया कठिन परिस्थितियों में भी वे मुस्कराती रही। और वह अपने लिए खुद ही खड़े होना चाहती थी। वह अपने जीवन मे किसी के उपकार का हिस्सा नहीं बनना नहीं चाहती थी। वे आत्मनिर्भर बनना चाहती थी। जिस कारण संसार उन्हें एक सकारात्मक सोच के नजरिए से उन्हें देख सके। तथा दूसरे व्यक्ति भी उनसे प्रोत्साहित हो सके। तथा अपने जीवन मे  अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके। 

नीरज कुमार    

Sakshi Pal

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