कई बार शिक्षक बहुत जल्दी किसी बच्चे के बारे में धारणा बना लेते हैं कि यह तो ऐसा ही है क्योंकि वे केवल बच्चों की क्रियाएँ और उसके व्यवहार के आधार पर आलोचना करना शुरू कर देते हैं और उसकी अवहेलना करने लगते हैं किंतु एक शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमें उसके उस व्यवहार के कारण को जानना चाहिए। उसके लिए बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए जैसे परिवार के सदस्यों के बारे में और उसके दिनचर्या के बारे में इत्यादि।
हमें कभी भी बच्चों से इस तरह के प्रश्न नहीं करने चाहिए कि तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है उसके स्थान पर आप यह बात करें कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ जिससे वार्तालाप को विस्तार मिल सके किन्तु यह तभी सार्थक होता है जब हम बिना कोई धारणा बनाए उसकी बात सुने। जब हम इस तरीके से बच्चों में रोचकता दिखाते हैं तो धीरे-धीरे बच्चा भी अपने विचारों को व्यक्त करने लगता है। फिर, हम उससे उसकी की गई क्रियाओं पर चर्चा कर सकते हैं और उसे सही गलत में फर्क करना सीखा सकते हैं ।
किसी भी बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए सबसे पहले शिक्षक में सहानुभूति की अपेक्षा समानुभूति की भावना होनी चाहिए क्योंकि जब उसकी समस्या या दर्द को समझने से ज्यादा महसूस करने का प्रयास करेंगे तो शायद हम सही मार्गदर्शन कर सकते हैं ।
जहाँ तक बच्चों के प्रति अभिभावकों एवं शिक्षकों के अलग-अलग दृष्टिकोण का प्रश्न है, इसे हमें एक साथ चर्चा करके एक स्थाई परिणाम पर लाना आवश्यक है जिससे कि हम सभी मिलकर उस बच्चे की सहायता कर सके जो आंतरिक भय या उदासीनता से जूझ रहा है।
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