एक अध्यापिका के रूप में व्यवहार की सरलता उतनी ही आवश्यक है जितनी श्यामपट्ट के लिए चाक। विद्यार्थी तभी बिना किसी भय व झिझक के अपनी समस्या साझा करे पाते हैं। उनके मन में यह दुविधा नहीं रहती – कहें या ना कहें।
व्यवहार की सरलता व सादगी का ज्वलंत उदाहरण रहे हैं राष्ट्रपति अब्दुल कलाम। उनसे बातें करना अपनत्व का अनुभव कराता था। यही अपनत्व विद्यार्थी शिक्षक अनुभव करे तो ही अध्यापन काल सार्थक व सफल है।
विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया
जब कक्षा कक्ष में सरलता का व्यवहार किया गया, सादगी को अपनाया गया तो निश्चित रूप से सकारात्मक परिवर्तन दृष्टिगत हुआ। वे विद्यार्थी जो मुखर थे उनसे घनिष्ठता बढ़ी, साथ ही वह विद्यार्थी जो अंतिम पंक्ति पर बैठा था अपनी बात व विचार रख पाया। व्यवहार की सरलता का प्रभाव दूरगामी होता है और कब यह किसके मन को कितना प्रभावित कर देती है यह कहना सरल तो नहीं है परंतु निश्चित ही इसके परिणाम सकारात्मक मिलते हैं।
विश्वास
विश्वास पर ही दुनिया कायम है। विश्वास की नींव पर ही सफलता का भवन खड़ा है। इस विश्वास की शुरुआत परिवार से होती है, जहां माता पिता व बच्चे इस विश्वास की बेल को पोषित करते हैं और फिर इस विश्वास की परिणीति उस वट वृक्ष के रूप में होती है जिसे हम समाज के रूप में देखते हैं, घनिष्ट मित्रता के रूप में देखते हैं।
विश्वास की कसौटी पर विद्यार्थी
मुझे विश्वास है कि मेरे विद्यार्थी उस ज्ञान को ग्रहण कर रहे हैं जो मैं उन्हें दे रही हूं। उस कला को सीख रहे हैं जो मैं उन्हें सिखाना चाहती हूं।
यही विश्वास होता है जब किसी प्रतियोगिता के लिए हम प्रतिभागियों का चयन करते हैं। यह हमारा विश्वास होता है कि चयनित प्रतिभागी श्रेष्ठ है, और इस विश्वास पर खरा उतरने के लिए वह भी जी जान से जुट जाता है। और जब वह सफल होता है तो निःसंदेह उस विश्वास की जीत होती है जो दोनों का एक दूसरी पर था।
विश्वास की इसी जीत पर राष्ट्रकवि की कुछ पंक्तियां लिखना चाहूंगी –
सौ – सौ निराशाए रहें, विश्वास यह दृढ़ मूल है,
इस आत्मलीला – भूमि के, वह विभु न सकता भूल है।
अनुकूल अवसर पर दयामय, फिर दया दिखलाएंगे,
वे दिन यहां फिर आयेंगे, फिर आयेंगे, फिर आयेंगे।
( कविता – हमारी सभ्यता और कवि – मैथिलीशरण गुप्त)
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