डॉ अनुपम सिब्बल ने अपनी पुस्तक में ठीक ही लिखा है कि जो चीजें हमें खुशी देती है, उनकी सूची छोटी होती जा रही है। हमें छोटी-छोटी बातों में खुशियों की तलाश करनी चाहिए ना कि किसी बड़ी खुशी के इंतजार में इन छोटे पलों को व्यर्थ गँवा देना। डॉक्टर सिब्बल ने अपनी पुस्तक में कई उदाहरण प्रस्तुत किए जिन्होंने लोगों को खुशी देने के लिए अपना जीवन तक समर्पित कर दिया।
यह बात जितनी छोटी लगती है उतनी ही बड़ी और सारगर्भित है कि दूसरों को खुशियाँ देने से हमारा मन भी प्रसन्न रहता है। एक बार की घटना याद आती है कि हमने स्कूल के बच्चों से उनके पुराने कपड़े, स्वेटर, शॉल आदि मंगवाए। जो फटे हुए नहीं थे अच्छी स्थिति में थे। आशा के अनुकूल बहुत सारे कपड़े इकट्ठे भी हुए तथा एक दिन तय किया गया उस दिन हम बाली तहसील के आदिवासी गाँवों की ओर गए। अरावली की तलहटी में बसे कुछ छोटे-छोटे गाँव जहाँ न शिक्षा की व्यवस्था थी न लोगों के लिए रोजगार का साधन था। हम वहाँ पहुँचे और उन लोगों में यह एकत्र किए हुए कपड़े बाँटने लगे।
लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा, कड़कड़ाती सर्दी में वे किस तरह से कम कपड़ों में गुजारा कर रहे थे। जब उन्हें स्वेटर आदि मिले तो बहुत खुश हुए। हमारे आसपास बच्चे, बूढ़े, जवान सब दौड़ दौड़ कर आए और खुश होते हुए हैं वे कपड़े ले गए। उनकी प्रसन्नता देख कर हमारे मन में भी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। कुछ लोग निराश होकर भी गए क्योंकि उनके आने तक कपड़े समाप्त हो चुके थे। परंतु एक बार पुनः आने का विश्वास दिला कर तथा विश्वास लेकर हम वहाँ से लौट आए।
यह घटना हमारे दिल में समाहित हो गई। मन में इस बात की प्रसन्नता थी कि उन लोगों के चेहरों पर हमने खुशी के भाव देखे। यह भी पता था कि यह ख़ुशी लंबे समय तक की नहीं थी। पर बड़ी ख़ुशी की तलाश में छोटी खुशियों से क्यों मुँह मोड़ें। इसलिए दूसरों को ख़ुशी देने का एक अवसर भी हाथ से न जाए।
Krishan Gopal
The Fabindia School
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