Quality का अर्थ है गुणवत्ता हम सभी में अर्थात संसार के हर एक मनुष्य में कोई ना कोई गुण अवश्य होता है ।कोई पढ़ने मे अच्छा होता है , तो कोई खेलने में, कोई कला में, तो कोई गृह कार्य में तो कोई बाहर के कार्य में कोई हस्त कला में निपुण होता है तो किसी की आवाज मीठी होती है। इस तरह हर किसी में कोई ना कोई गुण अवश्य देखने को मिलता है ,लेकिन अपने इस गुण को हर कोई बाहर नहीं ला पाता। इसलिए हमें कक्षा में हर एक विद्यार्थी के गुणों को बाहर लाने के लिए कक्षा में अलग-अलग तरह के क्रियाकलाप के द्वारा हर एक बच्चे के गुण को बाहर लाने का कार्य अध्यापिका का होता है।
कक्षा कार्य अथवा ग्रह कार्य विद्यार्थी सही ढंग से करें इसके लिए शिक्षकों को बच्चों से बेहद ही संजीदगी से बात करनी चाहिए। इससे बच्चे अनुशासित रहते है,और उनमें आज्ञाकारिता बनी रहती है । एक कक्षा अध्यापिका को अपनी कक्षा के हर एक बच्चे के बारे में पता होता है कि वह कैसा है? उसी के हिसाब से हमें उन्हें गृह कार्य अथवा कक्षा कार्य देना चाहिए जैसे कि अगर हमने कक्षा में गणित विषय में गिनती लिखने के लिए कॉपी में दी है ,तो जरूरी नहीं है कि सभी बच्चे वह कार्य करें तो जो बच्चे कार्य नहीं कर रहे हैं ।उन्हें हम वह कार्य कॉपी में न करा कर बाहर ले जाकर खेल-खेल में उनसे रेत में गिनती लिखवा सकते हैं या फिर कोई भी चीज से गिनती बनवा सकते हैं ।जैसे कि पत्थर से या फिर पत्तों से हमें हमेशा हर एक बच्चे को प्रोत्साहित करना चाहिए। क्योंकि हर किसी में कोई न कोई गुण अवश्य होता है ।
जरूरी नहीं है कि हर बच्चा पढ़ने में अच्छा हो। पढ़ने के अलावा वह बाकी चीजों में भी अच्छा हो सकता है। इसलिए हमें हमेशा बच्चों से प्यार अथवा नरमी से बात करनी चाहिए। क्योंकि प्राइमरी सेक्शन में यह देखा जाता है कि बच्चा उसी से अपनी बात कहता है जो उसको समझता है। क्योंकि हर बच्चे का स्वभाव अलग-अलग होता है। बच्चा एक गीली मिट्टी के जैसा होता है, जिसे हम नरमी से पेश आकर कोई भी आकार दे सकते हैं। हमें हमेशा बच्चों से बच्चे बनकर रहना चाहिए। क्योंकि बच्चों का दिमाग बहुत ही कोमल होता है। उनको हर चीज जानने की इच्छा होती है। उनके लिए हर चीज नई होती है इसलिए उन्हें उनके बारे में जाने की इच्छा भी अधिक रहती है। बच्चों में अच्छे गुण भी होते हैं और बुरे गुण भी और हमारा कार्य है बच्चों की अच्छे गुण को दर्शाना उन्हें अच्छे गुण में प्रोत्साहन देना। हमें कुछ इस ढंग से उनके अच्छे गुणों को दर्शाना चाहिए। जिससे कि उन्हें अपने बुरे गुणों की तरफ ध्यान ही न जाए और वह ऐसा कोई कार्य न करें। हमारा कार्य है उनके हर गुणों को सामने लाना । इसके लिए हमें उनके घर वालों से समय-समय पर बातचीत करते रहना चाहिए ।जिससे कि बच्चे के बारे में हमें पता चल सके कि बच्चा घर पर क्या करता है ?कैसे रहता है?और बच्चों के माता-पिता को हमारे द्वारा पता चल सके की बच्चा स्कूल में क्या कर रहा है? देखा जाए तो बच्चों का भविष्य घर में माता पिता के हाथ में और स्कूल में अध्यापिका के हाथ में होता है।
प्यार (love) आज के समय में ज्यादातर लोग प्यार शब्द को स्त्री-पुरुष के प्रेम-प्रसंग से जोड़कर देखते हैं। प्यार तो वह भावना है जो किसी व्यक्ति, वस्तु ,जीव और अपने ईश्वर के लिए निस्वार्थ पैदा होती है। प्यार का अर्थ ही हमेशा साथ निभाना होता है।
प्यार दिमाग से नहीं दिल से होता है ,प्यार में हम अच्छा-बुरा,अमीर-गरीब,गोरा- काला,छोटा-बड़ा कुछ नहीं देखते हैं ।हमें प्यार किसी से भी कभी भी हो सकता है। प्यार में ऐसी शक्ति होती है जो कठिन से कठिन कार्य को भी आसानी से कर सकता हैं। कठोर से कठोर हृदय वाले को भी पिघला सकता है । जो कार्य गुस्से से नहीं हो पाता प्यार के द्वारा आसानी से किया जा सकता है। प्यार में ऐसी शक्ति होती है, अगर कोई व्यक्ति आपसे बुरा व्यवहार भी करता है ,लेकिन आप प्यार से उससे अच्छा व्यवहार करेंगे तो वह व्यक्ति खुद ब खुद आपके साथ भी प्यार से व्यवहार करेगा। तभी प्यार को एक पवित्र एहसास माना गया है।
अगर आपको एहसास होता है किसी छात्र छात्रा के प्यार में पङने का तो आपको सबसे पहले दोनों को बिठाकर प्यार से उन्हें प्यार का मतलब समझाना चाहिए । क्योंकि जो हमारा विद्यालय है वह प्राइमरी सेक्शन वाला है। अभी तक ऐसा कुछ देखने या सुनने में नहीं मिला है । लेकिन अगर आगे जाकर हमें इस चीज का अगर सामना करना पड़ता है तो हम प्यार से ही समझाएंगे । और उन दोनों को प्यार का अर्थ समझाएंगे कि प्यार क्या है?
प्यार हम अपने माता पिता से ,अपने भाई बहन से ,अपने दादा दादी से ,अपनी अध्यापिका से ,किसी भी जीव से और भगवान से , किसी भी वस्तु से कर सकते हैं। और छात्र छात्रा के घर वालों से बातचीत द्वारा उनके बारे में पूछ सकते हैं। क्योंकि इसमें घर वालों की भी प्रमुख भूमिका रहती है। बचपन में जो भी चीज हमें अच्छी लगती है ।हम उससे प्यार कर बैठते हैं। फिर वह चाहे कोई खाने की चीज हो या कोई खेलने का सामान हो । जिसे हम दिल से चाहते हैं उसकी हम परवाह भी करते हैं । भले ही वह कोई इंसान हो या कोई वस्तु। अगर हम किसी जानवर से भी प्यार करते हैं तो हमारा प्यार भरा बर्ताव देख कर वह भी हमसे प्यार करने लगता है। अर्थात हमें सभी से मिलजुल कर रहना चाहिए ।सभी इसकी परवाह करनी चाहिए ।सभी से प्यार भरा बर्ताव रखना चाहिए। बच्चों का तो स्वभाव ही कक्षा में शोर मचाना और शैतानी करना होता है।
अगर कक्षा में अध्यापिका के होते हुए बच्चे शोर कर रहे हैं , तो इसमें बच्चे की कोई गलती नहीं मानी जाएगी। इसमें अध्यापिका की ही गलती मानी जाएगी कहीं ना कहीं उसके पढ़ाने का तरीका अथवा ढंग ही गलत होगा। इसलिए हमें कक्षा में इस तरह से पढ़ाना चाहिए । जिससे कि बच्चे शोर ना करें पढ़ने के साथ-साथ हमें क्रियाकलाप पर भी ध्यान देना चाहिए। उनके गलती करने पर हमें दंड ना देकर उन्हें अच्छे ढंग से समझाना चाहिए ।अगर आप दंड देंगे तो बच्चा और जिद्दी होगा । जिससे वह आपकी बात कभी भी नहीं सुनेगा।
- Shalini Gurung@JMMS, John Martyn Memorial School, Salangaon, Dehradun
No comments:
Post a Comment