गुणवत्ता (Quality)
गुणवत्ता का मतलब है, विशेषताओं की समग्रता जो एक आवश्यकता को पूरा करने के लिए कार्य करती है। गुणवत्ता को हम अनेक रूपों में ले सकते हैं, जैसे किसी व्यक्ति, वस्तु या किसी भी चीज के गुण या अवगुण। गुणवत्ता के द्वारा हमें इनके विषय में उचित ज्ञान होता है। गुण और अवगुण हर एक व्यक्ति में होते हैं और अपने गुणों के कारण ही लम्बे समय तक किसी व्यक्ति को याद किया जाता है। एक कक्षा में भी हर प्रकार के बच्चे होते हैं और एक अध्यापक को हर एक बच्चे को उसके गुणों और अवगुणों के साथ ही शिक्षा देनी होती है।
1. अगर कक्षा में कोई बच्चा कक्षा कार्य और गृह कार्य अच्छी तरह से नहीं कर रहा है तो एक अध्यापक को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए -
1) समझने की कोशिश करे कि ऐसा क्यों हो रहा है -
जब भी कोई बच्चा कक्षा कार्य और गृह कार्य अच्छी तरह से नहीं करता तो अध्यापक को चाहिए कि वह कारण जानने की कोशिश करे कि ऐसा क्यों हो रहा है? जो बच्चा बार - बार गंदा काम कर रहा है? कहीं यह समस्या उसके परिवार से जुड़ी तो नहीं या कक्षा में कोई ऐसी वजह जिससे वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा।
2) बच्चे पर गुस्सा ना करें और शांतिपूर्वक बात करें -
ऐसी स्थिति में अध्यापक को बच्चे पर गुस्सा ना करके प्यार से बात करनी चाहिए ताकि वह अपने मन की बात सुना सके। अगर अध्यापक बच्चे से प्यार से बात नहीं करेगा तो बच्चा कभी भी अपनी समस्या नहीं बता सकता। बच्चे की परेशानी समझने की कोशिश करे।
3) बच्चे को समझाएं और प्रोत्साहित करे-
बच्चे को यह समझाएं कि अगर वह अपना काम नियमित रूप से करेगा तो कक्षा में सभी बच्चे और अध्यापक उसकी प्रशंसा करेंगे और बच्चे को यह भी समझाने की कोशिश करें कि उसका कार्य उसके परीक्षाफल को प्रभावित करेगा जिससे उसके भविष्य पर भी असर पड़ेगा। बच्चे के लिए एक अध्यापक उचित मार्गदर्शक का कार्य कर सकता है और अगर बच्चे के अंदर आत्मविश्वास की कमी है तो उसे समझाएं कि "करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान" मतलब अभ्यास करते रहने से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन जाता है और बच्चे को यह भी समझाएं कि उसे कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी है।
4) बच्चे के अभिभावक से बात करेंगे -
अध्यापक को बच्चे के अभिभावकों से भी बात करनी चाहिए शायद वह जानते हो कि बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है या घर में ही बच्चे को कोई परेशानी है। अगर ऐसा कुछ है तो अभिभावक ही उसे सुलझा सकने में सक्षम हैं अपने बच्चे के लिए घर में ऐसा वातावरण बनाएं जो बच्चे को एकाग्र होने में मदद करें और बच्चे का गृह कार्य करवाने में उसकी मदद करें।
प्यार (Love)
प्यार एक भावना है, जिसका मतलब है, किसी व्यक्ति में गहरी रूचि या किसी की निकटता से प्राप्त होने वाली खुशी। प्यार एक ऐसा एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। प्यार में अलग-अलग विचारों का समावेश होता है, प्यार खुशी की और धीरे-धीरे अग्रसर होता है, यह एक निजी जुड़ाव की भावना है। प्यार के अनेक रूप हैं जैसे मां का बच्चे के लिए प्यार, गुरु का शिष्य के लिए, दोस्त का दोस्त के लिए और भी कई रूपों में प्यार हमें दिखाई देता है। प्यार का मतलब है, किसी व्यक्ति का हृदय की गहराइयों से ख्याल रखना प्यार हमें आंतरिक ऊर्जा देता है और हमारी समस्याओं के समाधान में हमारी मदद भी करता है। समाज में प्यार को अक्सर स्त्री-पुरुष के बीच के रिश्ते के रूप में देखा जाता है और प्यार का मतलब अक्सर गलत ही समझा जाता है।
2) यदि एक कक्षा में अध्यापक को कभी ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ जाए जब कक्षा के 2 बच्चों को लगे कि वे एक दूसरे से प्यार करते हैं, क्योंकि बच्चों को प्यार का सही मतलब नहीं पता होता तो अध्यापक को ऐसी स्थिति में बच्चों को यह समझाना होगा कि वास्तव में प्यार का सही मायने में क्या अर्थ है? प्यार एक मासूम सा एहसास है जो सभी रिश्तो में ऊर्जा देने का कार्य करता है। आजकल के बच्चे टेलीविजन पर मूवीस सच्चा प्यार वही है देखकर सोचते हैं कि प्यार एक भावना है जो उनकी जरूरतों को पूरा करती है लेकिन एक अध्यापक को बच्चों को यह समझाना होगा कि वास्तव में प्यार तो इंसान का इंसान से, इंसान का भगवान से निस्वार्थ रूप से प्रेम और जानवरों का भी एक दूसरे के प्रति प्यार होता है। जानवरों में भी प्रेम की भावना होती है। कक्षा में अगर दो बच्चे एक दूसरे से प्यार में पड़ जाएँ तो दोनों बच्चों को यह समझाएं कि यह जो उन दोनों के बीच है सिर्फ क्षणभंगुर आकर्षण है, जो उनके भविष्य को नुकसान पहुंचा सकता है उन्हें अभी इन सब बातों पर ध्यान ना देकर अपनी पढ़ाई और भविष्य पर ध्यान देना है, उन्हें यह भी समझाया जाना चाहिए कि प्यार उन्हें उनके परिवार में भी सभी करते हैं, जो किसी और के प्यार से ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनको अपने परिवार के विषय में सोचना है और अपने भविष्य के विषय में सोचना है। बच्चों को यह भी बताया जाए कि किस तरह से उनके माता-पिता रात-दिन मेहनत करके उनको विद्यालय में दाखिला दिलवाते हैं जिससे उनका भविष्य बन सके तो क्या यह उनके लिए माता-पिता का प्यार नहीं है। यह उसके माता-पिता का उसके लिए प्यार ही है जो इतनी मेहनत करके उसे विद्यालय में भेज रहे हैं। बच्चे को या समझाएं प्यार ही वह भावना है जो हमें बर्दाश्त करने की शक्ति देती है। सच्चा प्यार वही है जो हम निस्वार्थ भाव से करते हैं।
- Renu Raturi@JMMS, John Martyn Memorial School, Salangaon, Dehradun
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