चिंताशीलता (Thoughtfulness)
चिंताशीलता एक ऐसी भावना है, जिससे हम यह दिखाते हैं कि हम अपने सामने वाले के प्रति कितने चिंतित हैं और हम उसकी कितनी परवाह करते हैं। चिंताशीलता द्वारा हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि दूसरे व्यक्ति के मन में क्या चल रहा हैं और उसकी समस्याओं का समाधान कर सकेंगे। जिससे वह भी हमें अपना समझकर अपने मन की बात सुना सके। मैं अपनी कक्षा में बच्चों में एक दूसरे के प्रति चिंताशीलता विकसित करने के लिए निम्नलिखित साधनों का प्रयोग करूंगी ...
1)सुनना (Listening) - एक अध्यापक को चाहिए कि वह अपने विधार्थियो में एक दूसरे को सुनने की भावना विकसित कर सकें जिससे बच्चे एक दूसरे की समस्या या मन की बात समझ सकें और उनमें एक दूसरे के प्रति चिंताशीलता की भावना विकसित हो सके। जब बच्चों में एक दूसरे को सुनने की क्षमता विकसित होगी तभी वे आपस में समस्याओं का समाधान भी कर सकेंगे और एक दूसरे को अधिक करीब से समझ सकेंगे। इसके लिए स्वयं अध्यापक को अपने व्यक्तित्व को विधार्थियो के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। यदि अध्यापक बच्चों को ध्यान से सुनते हैं तो बच्चे भी उनका अनुकरण करते हैं।
2) दयालुता (Kindness) - बच्चों में वैसे तो दयालुता की भावना होती है लेकिन बचपना भी तो बच्चों में ही होता है इसलिए एक अध्यापक को चाहिए कि वह अपनी कक्षा में बच्चों के सामने इस तरह अपना व्यक्तित्व रखें ताकि बच्चों के अंदर दयालुता की भावना विकसित हो सके। बच्चे एक दूसरे के प्रति इतने दयावान बन जायें कि वे आपस में उचित तालमेल बिठा सकें। इसके लिए मुस्कान एक ज्योति का काम कर सकती है। अगर कोई बच्चा परेशान है और वह कक्षा में किसी से भी अपने मन की बात नहीं कह रहा तो उसका साथी उससे मुस्कुरा कर उसकी परेशानी जानने की कोशिश करे तो वह बिल्कुल भी नहीं हिचकिचायेगा। अध्यापक कहानियों के द्वारा भी विधार्थियो में दयालुता की भावना विकसित कर सकता है। दयालुता के द्वारा बच्चों में चिंताशीलता की भावना विकसित करने में सहायता मिलेगी।
3)प्रशंसा (Appreciation) - यदि हमारी कक्षा का एक विधार्थी किसी कारण से परेशान रहता है लेकिन किसी से भी अपनी परेशानी बताने में हिचकिचाहट महसूस करता है और हम उसकी मन की बात को समझने में असमर्थ हैं ऎसे में कक्षा का कोई एक बच्चा अपनी दयालुता या अपने अच्छे व्यवहार से उस बच्चे की समस्या का समाधान करने में सफल हो जाता है तो अध्यापक को मदद करने वाले बच्चे की प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए ताकि और बच्चे भी उससे प्रेरित होकर दूसरे बच्चों के प्रति चिंताशीलता की भावना अपने आप में विकसित करने में सक्षम हों।
समझ (Understanding)
समझ एक ऐसी भावना है जिससे कक्षा में बच्चों में सहानुभूति की भावना विकसित करके ही अध्यापक बच्चों में एक दूसरे को समझने की क्षमता का विकास करने में सक्षम हो सकता है।
निम्न क्रियाओं द्वारा हम बच्चों में सहानुभूति का विकास कर सकते हैं -
1) बच्चों को प्रेरक प्रसंग सुनाकर हम बच्चों के मन में यह भाव पैदा कर सकते हैं कि यदि वे एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखें तो आसानी से कक्षा में एक-दूसरे की समस्या को समझ सकते हैं।
2) अध्यापक स्वयं भी अपनी छवि ऐसे प्रस्तुत करें जिससे सभी बच्चों में सहानुभूति की भावना विकसित हो। यदि अध्यापक बच्चों के प्रति सहानुभूति रखेगा तो बच्चे भी अध्यापक का अनुकरण अवश्य करेंगे।
3) कक्षा में बच्चों से समूह गतिविधियां करवायी जाये और एक - दूसरे की राय सुनने के लिए कहा जाये, उन्हें यह बताया जाय कि वे समूह गतिविधि को तभी सफल बना सकते हैं जब वे एक-दूसरे के विचारों को समझें और सहानुभूति के साथ कार्य करें।
4) वार्ता - अध्यापक कक्षा में बच्चों से वार्ता करके भी सहानुभूति के महत्व को समझा सकते हैं। अगर छात्र वार्ता में भाग लेंगे तो निश्चित रूप से सहानुभूति को समझने में सक्षम होंगे। बच्चों के साथ वार्ता करने से छात्रों और शिक्षकों के मध्य मजबूत संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है और वार्ता सहानुभूति को बढ़ावा देने के लिए भी एक सांकेतिक मार्गदर्शक है क्योंकि हम बच्चों को सुनने और सुनने के महत्व को सिखा रहे हैं।
By: Renu Raturi@JMMS, John Martyn Memorial School, Salangaon, Dehradun
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