"हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊँ। परन्तु विचार प्रकट करने के आपके अधिकार की रक्षा करूँगा।" - वाल्टेयर, एक प्रसिद्ध फ़्रांसीसी दार्शनिक।
इससे मुझे आत्मविश्वास की अनुभूति होती है कि हाँ हम तार्किक या अतार्किक कोई भी बात कहे, जो किसी को पसंद आए न आए परन्तु हमें अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी है।
कहा जाता है कि पराधीनता सबसे बड़ा दुःख है जबकि स्वाधीनता अर्थात खुद के अधीन होना सबसे बड़ा सुख है। इस धरा पर सभी प्राणी सुखी होने के लिए आजाद रहना चाहते है। आज़ादी का अर्थ है कि हम स्वतंत्र रहकर काम कर सके, बोल सके। स्वाधीनता मानव की ही नहीं बल्कि हर प्राणी मात्र की सहज प्रवृत्ति है। किसी पक्षी को सोने के पिंजरे में भी बंद किया जाए तो वह छटपटाने लगता है जबकि खुले आसमान में रह कर वह प्रसन्न रहता है।
पराधीन व्यक्ति हमेशा काम करने के लिए दूसरे का मुँह ताकता रहता है, दूसरा जैसा कहे उसी के अनुसार अपना जीवन धकेलने के मजबूर होता है। उसमें न तो आत्मसम्मान होता है न ही स्वाभिमान, हर वक्त लटका चेहरा, दूसरों के सामने गिड़गिड़ाने जैसे भाव बने रहते है। अब प्रश्न यह है कि आजाद देश का निवासी होने से क्या कोई आजाद कहलाता है या आजादी के सही मायने कुछ और है। यह सत्य है कि आजाद देश का वासी होना बड़े गौरव की बात है पर गौरवान्वित महसूस करने के लिए स्वयं को भी आजाद होना जरूरी है। युगों - युगों से अनेक जड़ परम्पराओं का दास बना मानव दासता की उन कड़ी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है, अज्ञानता के घने अंधकार में कैद है और बंधनों की चादर कुछ इस प्रकार ओढ़ ली है कि आजाद देश का वासी होकर भी सही मायने में आजाद नहीं है।
संकीर्ण और दकियानूसी सोच के कारण मानव जब तक पुरानी सोच के अनुसार जीवन यापन करता रहता है, वह आजाद नहीं कहा जा सकता। कहीं कुछ ग़लत होता देखकर उसका विरोध न करें, किसी सामाजिक
समस्याओं के खिलाफ अपने भाव व विचार प्रकट
न करें तो वह आजाद
देश में रहकर भी परतंत्र और गुलाम है। विचार आजाद होंगे तभी मानव आजाद होगा और विचारों की आजादी के लिए प्रयास स्वयं
करना होगा।
The Fabindia School
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