मनुष्य निरंतर सीखता रहता है, अपने उत्थान के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है और इस सफर में thoughtfulness, पर-चिंता एक मुकुट मणि की भांति है.
Thoughtfulness
यानि कि पर-चिंतापूर्ण, सावधानीपूर्ण, संवेदना से भरा व्यवहार. जितना ज्यादा हम संवेदनशील रहते हैं, हमारा ध्यान स्वयं से हटकर 'हम' पर चला जाता है. यही भाव हमें पूरी सृष्टि के साथ एक कर देता है.
एक बच्चा
बाल्यावस्था में स्कूल में प्रवेश करता है और किशोरावस्था आने तक यह संबंध बना रहता है .यही उपयुक्त समय है जब thoughtfulness, पर-चिंतापूर्णता के नैतिक मूल्य का बीज उसके अंतर्मन में रोपा जा सकता है .पर यह कैसे किया जाए - विशेष तौर पर किशोरावस्था में जब एक बच्चा जहां ऊर्जा का भंडार है, वही अपनी पहचान बनाने बनाने में पूरी तरह अग्रसर. . . चलिए समझते हैं . . .
स्कूल में रंग-जाति, सामाजिक भेदो और मुखौटो का कोई काम नहीं . फिर भी
ज्येष्ठ छात्रों द्वारा अन्य छात्रों को डराना, धमकाना ,धौंस दिखाना कोई नई बात नहीं . अगर कारण बच्चे हैं तो निदान भी बच्चे ही हैं . यहीं पर संवेदना पूर्वक पर-चिंतापूर्णता को बच्चों को सिखाया जा सकता है.
हम में से कई लोगों ने नानी- दादी के मुख से महापुरुषों के जीवन और चरित्र के बारे में जाना है . उन्होंने ही प्रथम बार इनसे हमारा परिचय कराया था. यही कार्य आज का किशोर भी कर सकता है. माननीय मूल्यों के बारे में समझ कर, औरों को ललित कलाओं का उपयोग कर ,समझाता है, तो वह न केवल thoughtfulness की तरफ डग भरता है अपितु अपनी क्षमताओं का संवर्धन भी कर सकता है.
किशोरावस्था में बच्चे आपस में क्लब बनाकर, कुछ स्थानीय मुद्दों को उठाकर उन पर काम कर सकते हैं जिससे कि वे मुख्यधारा में खुद से जोड़ सकें. यह चाहे नेचर क्लब हो या पशु प्राणी की सहायतार्थ कुछ कार्य . जो भी हो वह ज्वलंत मुद्दों को उठाकर उनका निदान सुझाकर अपनी भागीदारी दर्शा सकता है. ऐसा करने पर वह स्वतः ही पर-चिंतापूर्ण अपना व्यवहार प्रदर्शित करता है
इन सभी पक्षों के पीछे संवेदना पूर्ण समझदारी है . यह नैतिक मूल्य हमारी बुद्धि को बहुआयामी रूप से प्रभावित करता है और
पर-चिंता भी इससे अछूती नहीं रहती.
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The Doon Girls' School, Dehradun
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