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हमारे
वेद पुराण तथा
धर्म ग्रंथ सदियों
से दोनों की
महिमा का बखान
करते रहे हैं।
माता
का प्यार, दुलार, ममता अतुलनीय है इसी
प्रकार जन्मभूमि की महत्ता
हमारे सभी भौतिक सुखों से कहीं
अधिक है। जन्मभूमि
की गरिमा और
उसके गौरव को
जन्मदात्री के
तुल्य ही माना
है। जिस प्रकार
माता बच्चों को
जन्म देती है, लालन-पालन करती
है बच्चों की
खुशी के लिए
कई कष्टों को
सहते हुए सुखों
का परित्याग करती
है उसी प्रकार
जन्मभूमि जन्मदात्री
की तरह ही
अनाज उत्पन्न करती
है। वह अनेक
प्राकृतिक विपदाओं को झेलते
हुए भी अपने
बच्चों का लालन-पालन करती हैं।
अतः कवि ने
सच ही कहा
है कि वह
लोग जिन्हें अपने
देश तथा जन्मभूमि
से प्यार नहीं
उनमें सच्ची मानवीय संवेदनाएँ नहीं हो
सकती।
"जो
भरा नहीं है, भावों से बहती
जिसमें रसधार नहीं
हृदय
नहीं वह पत्थर
है, जिसमें स्वदेश
का प्यार नहीं।"
माता
(जननी) प्रत्येक रूप में
पूजनीय है तभी
तो माता को
देव तुल्य माना
गया है। जन्मदात्री
की तरह जन्मभूमि
का स्थान भी
श्रेष्ठ है। जन्मभूमि
भी तो माता
का ही रूप
है जहाँ हम हँसते खेलते बड़े
होते हैं। उसी
का अन्न खाकर
हमारे शरीर और
मस्तिष्क का विकास
होता है। जन्मभूमि
भी हमारे लिए
जन्मदात्री के
समान वंदनीय है।
इसकी रक्षा व
सम्मान करना हमारा
कर्तव्य है। हमारे
देश में कई
ऐसे महापुरुष,
सच्चे सपूत हुए
हैं जिन्होंने जन्मभूमि
की आन बान
शान के लिए हँसते-हँसते अपने
प्राणों की बलि
दे दी। इन
शहीदों की अमर
गाथाएँ आज भी
युवाओं में देश
की भावना को
जागृत करती है।
जन्मभूमि के प्रेम
के कारण महाराणा
प्रताप ने अकबर
से युद्ध में
हारने के बावजूद
अपनी अधीनता स्वीकार
नहीं की और
वन में घास
की रोटियाँ खाना
स्वीकारा।
अतः
जननी और जन्मभूमि
दोनों ही वंदनीय
है। दोनों ही
अपने-अपने रूपों
में पुत्र पर
सुखों को न्योछावर
करती है ।
इनकी रक्षा करना
हमारा उत्तरदायित्व
है।
जय हिंद-भारत माता की जय।
The Fabindia School
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