अधिकांशतः ऐसा होता है कि माता-पिता बच्चों को गलतियाँ करने पर डाँटते है और अपेक्षा करते हैं कि पहली बार में ही बच्चा उस काम को सफलतापूर्वक पूर्ण कर लें। यदि बच्चा साइकिल चलाना सीख रहा है तो वह गिरेगा और संभालेगा यदि गिरने का डर उसके मन में बैठ जाए तो वह साइकिल चलाना नहीं सीख सकेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चे को गलतियाँ करने की स्वतंत्रता दी जाए। साथ ही साथ बच्चे के मन में एक ऐसी भावना जागृत की जाए जिससे कि वह अपनी गलतियों को छिपाए नहीं बल्कि उजागर करें। बालक जब अपनी गलतियों को उजागर करेगा तभी वह उससे सीख भी लेगा, की गई गलतियों से सीख लेना भी हमें आदत में डालना पड़ेगा।
माता पिता के रूप में बच्चे की कमियों को स्वीकार करना चाहिए तथा उनमें जो खूबियाँ हैं उन्हें भी देखना चाहिए। तुलनात्मक आँकलन करना उचित नहीं क्योंकि हर बच्चे की प्रवृत्ति, सोच तथा तरीके भिन्न होते हैं। कोई भी व्यक्ति सभी क्षेत्रों में समान नहीं हो सकता। एक वयस्क व्यक्ति भी कई बार गलतियाँ कर जाता है तो बच्चे क्यों नहीं कर सकते। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम एक ऐसा वातावरण तैयार करें जिससे कि बच्चा अपनी गलतियों को नजरअंदाज ना करें तथा इन गलतियों को छिपाए नहीं।
हर बच्चा विशिष्ट है किंतु हर बच्चे का क्षेत्र अलग अलग हो सकता है। उदाहरण के लिए कोई बच्चा खेल में अच्छा है तो कोई शिक्षा में, कोई इन से हटकर किसी और क्षेत्र में रुचि दिखा सकता है। सभी बच्चों से एक प्रकार की अपेक्षा करना तर्कसंगत नहीं लगता।
गलती करने पर डाँट पड़ेगी यह सोच कर बच्चे अपनी गलतियों को छिपाते हैं तथा अपनी कमियों का मूल्यांकन नहीं करते। परिणाम स्वरूप अपनी गलतियों से सीख लेने और कमियों को दूर करने के प्रयास नहीं किए जाएँगे, ऐसे में स्थिति पूर्ववत ही बनी रहेगी, किसी प्रकार का कोई परिवर्तन दृष्टिगोचर नहीं होगा। बालक को अपनी बात कहने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। कुछ बच्चे वाचाल होते हैं जो अपने मन की बात को कह देते हैं किंतु कुछ बालक शांत प्रवृत्ति के होते हैं वे खुलकर अपनी बातों को नहीं कह पाते।
थोपे हुए काम केवल पूरे किए जा सकते हैं किंतु उनमें नवीनता, सृजनात्मकता दिखाई नहीं देगी। इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों को बोलने का अवसर दिया जाए। गलतियाँ होने पर स्वीकार करें तथा अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें। तभी हम बच्चे को सही राह दे सकेंगे।
कृष्ण गोपाल दवे
The Fabindia School, Bali
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