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इसलिए एक विचारक ने कहा है -
जिसने मन को जीत लिया, बस उसने जीत लिया संसार
मन के कारण ही इच्छा-अनिच्छा, संकल्प-विकल्प, अपेक्षा-उपेक्षा आदि भावनाएं जन्म लेती हैं। मन में मनन करने की क्षमता है, इसी कारण मनुष्य को चिंतनशील प्राणी कहा गया है। संकल्पशील रहने पर व्यक्ति कठित से कठिन अवस्था में भी पराजय स्वीकार नहीं करता, जबकि इसके टूट जाने पर छोटी- सी विपत्ति में भी निराश होकर बैठ जाता है।अर्थात दुख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं, इसलिए अपना पौरूष मत छोड़ों। हार-जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर होती है।
ऐसे अनेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं, जिनमें मन की शक्ति से व्यक्ति ने असंभव को संभव कर दिखाया, और पराजय को जय में बदल दिया। अकबर की विशाल सेना को केवल मन की शक्ति के बल पर महाराणा प्रताप और उसकी सेना ने नाकों चने चबवा दिए। शिवाजी अपने थोड़ें से सैनिकों के साथ मन की शक्ति के सहारे ही तो औरंगजेब से लोहा ले सके। मन की शक्ति के बल पर ही कमजोर दिखने वाले गांधी अंग्रेजों को भारत से निकालने में सक्षम हुए। इसी शक्ति के बल पर द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पुन: उठ खड़ा हुआ और कुछ ही समय में पुन: उन्नत राष्ट्रों की श्रेणी में आ गया। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं।
धन्यवाद
उस्मान गनी
The Fabindia School
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