चरित्र के कई अंग है जैसे सत्य पर अटूट विश्वास, शांत आदि। जो व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर दृढ़ होता है, उसी का चरित्र शुद्ध होता है। सरल हृदय व्यक्ति में विश्वास, प्रेम, दया ,कोमलता तथा स्वानुभूति के भाव स्वयं ही उत्पन्न हो जाते हैं। इनमें से एक भी गुण पूरी तरह आ जाए, तो व्यक्ति शिष्ट कहलाने लगता हैं। अच्छे चरित्र वाला व्यक्ति डरता नहीं है, निराश नहीं होता। है। पवित्र चरित्र के प्रधान अंग है छल कपट ना होना, लेन -देन में सफाई, वचन पालन, दया -भाव, परिश्रम पर विश्वास ,अभिमान का अभाव जिस के चरित्र में उक्त सभी गुण विद्यमान हो, वह सज्जन व्यक्ति की श्रेणी में आता है।
राजेश्वरी राठौड़
The Fabindia School
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