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‘विज्ञान’ का शाब्दिक एवं वस्तुगत अर्थ है किसी विषय का विशेष और क्रियात्मक ज्ञान। क्रियात्मक ज्ञान होने के कारण ही विज्ञान अपने अन्वेषणों-अविष्कारों के रूप में मानव को कुछ दे सकता या वर्तमान में दे रहा है। विज्ञान भौतिक सुख-समृद्धियों का मूल आधार तो है, पर आध्यात्मिक सिद्धियों-समृद्धियों का विरोधी कदापि नहीं है। फिर भी कई बार क्या अक्सर विज्ञान को धर्म और अध्यात्मवाद का विरोधी समझ लिया जाता है।
जबकि वस्तु सत्य यह है कि धर्म और अध्यात्म-भाव को वैज्ञानिक दृष्टि और विश्लेषण-शक्ति प्रदान कर विज्ञान मानव के हित-साधन में सहायता ही पहुंचाता है। विज्ञान ने उन अनेक रूढ़ियों और अंधविश्वासों पर तीखे प्रहार किए हैं, जिनकी भयानक जकड़ के कारण मानव-प्रगति के द्वार अवरुद्ध हो रहे थे। चेतना कुण्ठित होकर कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो रही थी। यह विज्ञान की ही देन है कि आज हम अनेक विभ्रांत धारणाओं के चक्र-जाल से छुटकारा पाकर मानव की सुख-समृद्धि के लिए अनेक नवीन प्रगतिशील क्षितिजों के उदघाटन में समर्थ हो पाए हैं। ऊंच-नीच, जाति-पाति, छुआछूत, आदि अनेक धार्मिक धारणाओं में हमें विज्ञान ने ही मुक्ति दिलवायी है। हम आज खुले मन-मस्तिष्क से सोच-विचार सकते हैं, खुले वातावरण और वायुमंडल में सांस लेकर जी सकते हैं। आज हमारी मानसिकता को अनेकविध व्यर्थ भय के भूत आतंकित नहीं किए रहते। हम किसी भी बात का निर्णय खुले मन-मस्तिष्क से करके अपने व्यवहार को तदनुकूल बना पाने में समर्थ हैं। मानव-कल्याण के लिए इन सब बातों को हम आधुनिक विज्ञान की कल्याणकारी देन निश्चय ही मान सकते हैं।
ज्ञान-विज्ञान की नित नई उपलब्धियों के कारण ही आज शिक्षा का विस्तार संभव हो सका है। मानव को नई और सूझ-बूझपूर्ण आंख मिल सकी है। ज्ञान-विस्तार और मनोरंजन के विभिन्न क्षेत्र एवं संसाधन प्राप्त हो सके हैं। वह गांव-सीमा से उठकर नगर, नगर-सीमा से ऊपर जिला और प्रांत, फिर राष्ट्रीय और सबसे बढक़र अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक अपना, अपने मानवीय संबंधों का निरंतर विकास कर सका है। अनेक प्रकार के संक्रामक एंव संघातक रोगों से भी मुक्ति पाने में समर्थ हो सका है। ऐसा क्या नहीं, जो विज्ञान ने मानव को अपने सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए नहीं दिया?
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम मानव अपने मन-मस्तिष्क को विशाल, उदार और संतुलित बनाए। निहित स्वार्थों या दंभों को, सभी प्रकार की कुंठाओं को भुलाकर विज्ञान की गाय के बछड़े बनकर उसका दूध पीने-दुहने का ही प्रयत्न करें, जोंक बनकर रक्त चूसने का नहीं। बस-फिर मानवता का कल्याण ही कल्याण है। अन्य कोई उपाय नहीं है कल्याण का।
धन्यवाद,
उस्मान गनी
The Fabindia School
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