"ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए |
औरन को सीतल करे, आपहु सीतल होए ||"
जी हाँ ! गहन अध्ययन का विषय है कि खुशी (HAPPINESS) तथा सहनशीलता (TOLERANCE) एक दूसरे के पूरक हैं | हम यह भी कह सकते हैं कि यदि आइने के एक ओर खुशी खड़ी है, तो दूसरी ओर सहनशीलता उसके प्रतिबिम्ब के रूप में दिखाई देती है |
एक छोटा सा पौधा उगाया जाए तो उसमें से फल या फूल के उगने तक की प्रतीक्षा, सहनशीलता का प्रतीक है और जिस प्रकार एक माँ अपने नवजात शिशु को देखकर भीगी मीठी आँखों से खुशी का व्याख्यान करती है,उसी प्रकार फल को देखकर हर चेहरे पर खुशी का अनुभव किया जा सकता है |
कक्षा में अध्यापिका सभी को समान रूप से शिक्षित करती है परन्तु हर छात्र प्रथम स्थान अर्जित नहीं कर पाता | जब शिक्षिका उस विद्यार्थी का हाथ थाम कर उसे सबके समान स्थान पर पहुँचाती है, जो शायद पढ़ाई में कुछ कमज़ोर होने के कारण सबसे आँखें चुराता हो,तो थोड़ी सहनशीलता का पालन दोनों ही ओर से करते हुए दोनों के मुख पर जिस खुशी का अनुभव किया जा सकता है, वह खुशी अतुलनीय है।
अपनी खुशी ढूँढना मनुष्य का स्वाभाविक कर्म है,परन्तु अपनी हार्दिक इच्छा के विरुद्ध जाकर भी दूसरे के विचारों को सुनना, समस्याओं को सुलझाना तथा विचारों को सम्मान देना सहनशीलता का सर्वोपरि उदाहरण है और दूसरे की खुशी में जो खुशी ढूँढना शुरू कर दे, वह सृष्टि का वास्तविक अधिपति कहलाता है |
अध्यापक जीवन की एक सत्य घटना से आपको अवगत कराती हूँ | कक्षा दसवीं की आवासीय विद्यालय की एक छात्रा जो शायद अपने पारिवारिक कारणों से कुछ अनमनी सी विद्यालय में सभी से लड़ लिया करती थी | उसका स्वभाव हमेशा ही चिड़चिड़ा रहता था| कोई भी बच्चा उससे मित्रता करने में कतराता था, यहाँ तक कि विद्यालय के अध्यापक-अध्यापिकाएँ भी उससे बच कर निकलना पसन्द करते थे, यह सोच कर कि वो न जाने कब-किस पर बिगड़ जाए | मुझे उस छात्रा के लिए विशेष अध्यापिका के रूप में नियुक्त किया गया | कार्य मुश्किल था,परन्तु असंभव नहीं |
उस बच्चे के दिमाग को पढ़ने,समझने तथा उस की मनोस्थिति समझने में मुझे तकरीबन दो महीने का समय लग गया, परन्तु मेरे द्वारा दिखाए गए सहनशीलता के मार्ग पर जल्द ही वह भी चलने लग गई, और जल्द ही हम दोनों के बीच स्नेह भरा एक प्यारा सा रिश्ता कायम होने लगा जिससे अब मैं उस छात्रा की शिक्षिका कम और मित्र ज़्यादा हो गई |आज वह छात्रा दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में एक सफल मनोचिकित्सक है |
सहनशीलता और खुशी का इससे बेहतर उदाहरण और कहाँ मिलेगा जब आप अपने हाथ से धरती में बीजारोपण करो और आपकी आँखों के सामने उस बीज की बेल निशदिन एक-एक पत्ता, एक-एक फूल के साथ बढ़ती हुई उन्नति की नई सीढ़ियाँ चढ़ती दिखाई दे |
सहनशील धरती जैसा जो हर मन हो जाए,
फल-फूल के रूप में खुशियाँ अपार पाए|
हर जीवन फलती बेलों सा मंद-मंद मुस्काए,
जो हर प्राणी थोड़ा-थोड़ा सहनशील हो जाए |
Proudly created by the inspiring team of Triumph DGS @ The Doon Girls' School, Dehradun - Prachi Jain, Mansi Sondhi Arora, Ritika Chandani, Shalu Rawat, Mohini Bohra Chauhan and Prachi Parashar
No comments:
Post a Comment