एकता में बहुत शक्ति होती है। एकता, सामूहिक कार्यों को बढ़ावा देती है, लोगों में आत्मविश्वास उत्पन्न करती है और आगे की ओर बढ़ने के लिए प्रेरणा देती है तथा उनका मार्गदर्शन भी करती है। कई कार्यों में एकता की मिसाल देखी जाती है- वैसे एकता के लिए हमने बचपन में बहुत सारी कहानियाँ सुनी है। एक लकड़ी आसानी से टूट सकती है लेकिन लकड़ियों का बंडल नहीं टूट सकता। एकता के और भी उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे चीटियाँ, मधुमक्खियाँ आदि यह सब मिलकर अपना काम पूरा करती है।
स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त भारतीय नेताओं ने यहाँ की जनता को भावनात्मक रूप से एक किया और उसी का यह परिणाम था कि हमें आजादी प्राप्त हुई इस तरह से विघटनकारी शक्तियों का विनाश हुआ। कुछ स्थानों पर देखते हैं कि भाषा, धर्म या जाति के आधार पर लोगों में एकजुटता नहीं रही है। लेकिन ऐसा सब जगह नहीं है, कई स्थानों पर हमें आज भी वही एकता-अखंडता देखने को मिलती है। वैसे भी भारत तो विभिन्नता में एकता वाला देश है। हमारे लिए एकता का स्रोत है, भारतीय साहित्य और दर्शन। ये कई भाषाओं में लिखे गए हैं। कोई भी काम धैर्य पूर्वक एकता पूर्वक करेंगे तो वह निश्चित रूप से सफल होगा।
विद्यार्थियों के लिए भी यह जरूरी है कि विद्यालय में कक्षा में एकता की भावना रखें। एकता की भावना सीखने का बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है, खेल। खेल में जिस तरह से वह टीम बनाकर सामने वाली टीम से मुकाबला करते हैं और विजय प्राप्त करते हैं। इससे बढ़कर और कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। इसी तरह से किसी मकान का बनना या किसी आंदोलन का सफल होना या कोई और काम जो किसी अकेले द्वारा नहीं हो सकता, उनकी सफलता का मंत्र जो है वह एकता ही है। एकता से ही हम बहुत काम सिद्ध कर सकते हैं। हमारा कोई काम ना बिगड़े सही ढंग से होता रहे यदि हम एकता पूर्वक रहेंगे तो हमें कोई आँख नहीं दिखा सकता।
यह तो बात हो गई एकता की, लेकिन यदि हम एकता को लंबे समय तक बनाए रखना है तो जरूरी है कि जो टीम है या जो भी व्यक्ति है, वह एक दूसरे की देखभाल करें, एक दूसरे के विचारों से सहमत हो। यदि ना हो सहमत तो अपनी राय दे सकते हैं लेकिन वह भी विनम्रता पूर्वक। अगर हम एक दूसरे की देखभाल करेंगे तो एकता घनिष्ठ होगी और जब एकता घनिष्ठ होगी तो उसके परिणाम भी सकारात्मक होंगे यदि सदस्यों में आपसी फूट हो तो किसी प्रकार की कोई समस्या का निदान नहीं हो सकता।
माँ अपने बच्चों की देखभाल करती हैं, पिता करते हैं, ठीक उसी प्रकार हमें भी हमारे सहयोगी की देखभाल करनी चाहिए। उसके दुख में उसे सांत्वना दें, खुशी में स्वयं भी खुश हो। अगर कोई परेशानी हो तो उससे निजात दिलाने का प्रयत्न हमारे द्वारा अवश्य किया जाना चाहिए। जब तक हम इस तरह अपनत्व का परिचय नहीं देंगे तब तक सामने वाले व्यक्ति के मन में एकता की भावना पैदा नहीं कर सकते। बहुत बड़े-बड़े संगठन हुए हैं, जो एकता के दम पर चल रहे हैं और उसमें यही महत्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की अच्छे से देखभाल करता है। इसलिए जरूरी है कि हम अपने संगठन या व्यक्ति का ध्यान रखें, उसकी देखभाल करें। आवश्यकता होने पर उसकी सहायता करें, उसका विश्वास प्राप्त करने की कोशिश करें। हो सकता है, कई बार इसमें नाकामयाब भी हो लेकिन प्रयत्न करना मनुष्य का कर्तव्य है बिना प्रयत्न के हार मान जाना मनुष्य का काम नहीं है।
हमें अपना कर्म करना है लोगों की देखभाल करते हुए उन को एकता के सूत्र में पिरोने का प्रयास करना है। यह आवश्यक है कि हम यह शुरुआत परिवार से करें। खुशी से रहिए, आनंद उठाइए एकता के सूत्र में रहिए और एक दूसरे की अच्छे से देखभाल करते रहिए। विद्यालयों में यह दायित्व एक अध्यापक का हो जाता है कि वह अपने बच्चों की देखभाल करें, उनको एक साथ एकता के सूत्र में बाँधने का काम करें। तभी उसका जीवन सार्थक है, उसके विद्यार्थी आपसी एकता रखेंगे।
Krishan
Gopal
The Fabindia
School, Bali
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