विनम्रता
एक दूसरे के
प्रति प्रेम और
विश्वास की भावना
में वृद्धि करके
एक दूसरे के
प्रति विश्वास की
भावना को जागृत
करना । विनम्रता
महानता की ओर
ले जाती है
। विनम्रता मनुष्य का आभूषण
है। यह मनुष्य
का सर्वोत्तम गुण
है क्योंकि व्यक्ति
में अगर विनम्रता
नहीं हो तो
उसके अन्य गुण
व्यर्थ है ।
विनम्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व
और चरित्र निर्माण
में सहायक है
अतः विनम्र होना
सबसे बड़ी खूबसूरती
है । विनम्र आदमी
को डिग्री की
जरूरत नहीं होती,
विनम्र व्यक्ति में घमंड,
अहंकार, दिखावे का कोई
भाव नहीं होता।
विनम्रता
ही सही मायने
में हमें बड़ा
बनाती है। विनम्रता
व्यक्तित्व में निखार
लाती हैं और
सफलता का कारण
भी बनती है।
विनम्रता मनुष्य को बड़ा
व ईमानदार बनाती
है। विनम्र व्यक्ति के सामने
कठोर हृदय वाले
व्यक्ति को भी
झुकना पड़ता है। जो
विनम्र होते हैं
हर जगह सम्मान
पाते हैं, कोई
भी व्यक्ति बिना
विनम्र बने धन
दौलत तो पा
सकता है परंतु
लोगों के दिलों
में जगह नहीं
पा सकता।
जिस
प्रकार सूखी मिट्टी
पर जल डालकर
गीली मिट्टी को
मनचाहा आकार दे
सकते हैं उसी
प्रकार कठोर से
कठोर व्यक्ति से
विनम्रता पूर्वक व्यवहार कर
मनचाहा परिणाम पा सकते
हैं । विनम्रता
से वह कार्य
भी बन जाते
हैं जो कठोरता
से नहीं बन
पाते। व्यक्ति को
व्यवहार का मिठास
नम्रता से मिलता
है। यदि विनम्रता
का महत्व ना
होता तो कृपया,
धन्यवाद आदि शब्दों
का महत्व भी
नहीं होता इन
शब्दों में ही
व्यक्ति की नम्रता
झलकती है।
"पोथी पढि
पढि जग मुआ
पंडित भया न
कोय,
ढाई आखर
प्रेम का पढ़े
सो पंडित होय।।"
संत
कबीर दास जी
कहते हैं कि
बड़ी-बड़ी पुस्तकें
पढ़ने का कोई
लाभ नहीं है
जब तक कि
आप में विनम्रता
नहीं आती और
आप लोगों से
प्रेम से बात
नहीं कर पाते
। कबीर जी
कहते हैं कि
जिसे प्रेम के
ढाई अक्षर का
ज्ञान प्राप्त हो
गया वही इस
संसार का असली
विद्वान है।
ऊंचा उठने के
लिए पंखों की
जरूरत पक्षियों को
पड़ती है,
इंसान जो जितना
झुकता है उतना
ही ऊपर उठ
जाता है।
जो विनम्र होते हैं वही प्रशंसा के पात्र होते हैं। जैसे चांदी की परख घिस कर, सोने की परख भट्टी में होती है वैसे ही मनुष्य की परख लोगों के द्वारा की गई तारीफ से होती है। प्रशंसा व्यक्ति के गुणों का बखान व कार्यों की तारीफ करना। प्रशंसा से आत्मविश्वास बढ़ता है।
प्रशंसा
करने के कई
प्रकार होते हैं
जैसे सामान्य प्रशंसा,
अधिक प्रशंसा, वास्तविक
प्रशंसा, झूठी प्रशंसा।
सही प्रशंसा व्यक्ति
का हौसला बढ़ाती
है, अधिक प्रशंसा
व्यक्ति को लापरवाह
बनाती है।
सच्चे
लोग कभी प्रशंसा
के मोहताज नहीं
होते क्योंकि असली
फूलों को कभी
इत्र लगाने की
जरूरत नहीं होती। हम
किसी बच्चे को
जबरन कक्षा कार्य
या कोई भी
कार्य करने के
लिए मजबूर कर
सकते हैं। उनसे
अच्छा कार्य लेने
के लिए उन्हें
प्रोत्साहन करना उनके
अच्छे कामों की
प्रशंसा करना जरूरी
है। हमें उनके
अच्छे कामों के
लिए पीठ थपथपाना,
और अच्छा कार्य
करने के लिए
प्रोत्साहित कर सकते
हैं।
Usha Panwar
The Fabindia School, Bali
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