विनम्रता हमारे
आंतरिक प्रेम की
शक्ति से आती
हैं। दूसरों का
सहयोग व सहायता
का भाव ही
हमें विनम्र बनाता
है । यह
कहना गलत है
कि यदि हम
विनम्र बनेंगे तो
दूसरे हमारा अनुचित
लाभ उठाएँगे ।
यथार्थ स्वरूप में
विनम्रता हममे गजब का
धैर्य पैदा करती
हैं । हममें
सोचने समझने की
क्षमता का विकास
करती हैं ।
विनम्रता हृदय को विशाल,
स्वच्छ और ईमानदार बनाती
हैं । यह
हमको सहज संबंध स्थापित करने के योग्य
बनाती हैं ।
विनम्रता न
केवल दूसरों का
दिल जीतने में
कामयाब होती है
अपितु हमको अपना
ही दिल जीतने
के योग्य बनाती
हैं । जो
हमें आत्म गौरव
और आत्म बल
में ऊर्जा का
अनवरत संचार करती
हैं। हमारी भावनाओं के द्वंद्व समाप्त हो
जाते हैं। साथ
ही व्याकुलता और
कठिनाइयाँ स्वत: दूर होती
चली जाती हैं।
एकमात्र विनम्रता से ही संतुष्टि, प्रेम
और सकारात्मकता हमारे
व्यक्तित्व के स्थायी गुण
बन जाते हैं।
प्रशंसा श्रेष्ठता एवं
प्रसन्नता का प्रतीक होती
हैं क्योंकि प्रशंसा जिसके
भी विषय में
हो उसे श्रेष्ठ प्रमाणित करती
हैं तथा उसको
प्रसन्न करने का कार्य
भी करती हैं
। प्रशंसा वार्तालाप के
वातावरण को खुशनुमा एवं
संबंधित इंसानों को खुशियाँ प्रदान
करने का सबसे
सरल साधन होता
है । मनुष्य
के विचारों में
सदैव परिवर्तन होता
रहता है परंतु
श्रेष्ठ विचारों की प्रशंसा वास्तविक प्रशंसा ही
होती हैं क्योंकि विचारों की
श्रेष्ठता सत्य होती हैं
। जो कभी
समाप्त नहीं होती
हैं चाहे विचार
व्यक्त करने वाला
इंसान स्वयं भी
उन विचारों पर
क्रियाशील ना हो ।
प्रशंसा वास्तविक होने
से प्रेरणादायक होती
हैं एवं झूठी
प्रशंसा मन को प्रसन्न अवश्य
करती हैं परंतु
इंसान को भ्रमित
करके उसकी बुद्धि
को प्रभावित करती
हैं। प्रशंसा दैनिक
जीवन की दिनचर्या का
महत्वपूर्ण अंग हैं ।
धन्यवाद, वाह-वाह, बहुत
अच्छे, अति सुंदर
जैसे शब्द सामान्य प्रशंसा के
सूचक होते हैं।
अपने समीप के
इंसानों एवं अपनों तथा
मित्रों को प्रोत्साहित करने
के लिए सामान्य प्रशंसा अत्यंत
आवश्यक कार्य हैं,
इससे अच्छे कार्यों के
प्रति उत्साह में
वृद्धि होती हैं
। इंसान अपने
अच्छे कार्यों की
प्रशंसा सुनकर और अधिक
अच्छे कार्य करने
के लिए प्रेरित होता
है । सामान्य प्रशंसा करना
इंसान के व्यवहार की
श्रेष्ठता को भी प्रमाणित करती
हैं क्योंकि अव्यवहारिक इंसान
कभी किसी की
प्रशंसा नहीं करते हैं।
Jaffar Khan
The Fabindia School, Bali
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