आजादी का अर्थ यह नहीं कि केवल आप कानूनी रूप से गुलाम हो। यदि आप किसी के आदेशों की पालना करने के लिए बाध्य हो तब भी आप आजाद नहीं है, ऐसा कहा जा सकता है। स्वतंत्र रूप से आप अपने मनोवृत्ति से जो कुछ करेंगे वही स्वतंत्रता है। आजकल एक बात विशेष रूप से कही जाती है अभिव्यक्ति की आजादी, बिल्कुल लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए लेकिन उस आजादी का कहीं कोई गलत अर्थ ना निकाले या उसका कोई गलत फायदा ना उठाए, इसके लिए भी कुछ न कुछ प्रयोजन होना चाहिए।
कई लोग जातिवाद को गुलामी मानते हैं कुछ हद तक सही भी है क्योंकि जहाँ तक आप अपने जीवन में कुछ भी निर्णय लेने में सक्षम ना हो तो यह एक तरह से गुलाम मानसिकता ही कही जाएगी। आजादी वहाँ है, जिसमें व्यक्ति कुछ सोचे समझे, अपने अधिकारों की रक्षा करें, अपनी भलाई बुराई के विषय में स्वयं सोच सकें, अपने रोजगार के लिए मनचाहा काम कर सके, स्वयं की या अपने बालकों की शिक्षा के प्रति वह अपना निर्णय ले सकें।
इसके अलावा बालकों को भी कुछ स्वतंत्रता है कक्षा में वह अपने प्रश्न खड़े कर सके, अपनी जिज्ञासा अध्यापकों से पूछ सकें अपने मन से किसी विषय पर विचारात्मक लेख लिख सकें, उसे अपने विचार प्रस्तुत करने की आजादी है। यह जरूर है कि यह विचार देश के कानून के विरुद्ध ना हो, वैद्य हो, बालक और अभिभावक अपनी इच्छा से शिक्षा के लिए साधन संस्था और माध्यम चुन सकते हैं।
यह स्वतंत्रता एक तरह से एकता का काम भी करती है। लोगों को वह एक सूत्र में बाँधने का काम करती है। उदाहरण के लिए लोग अपने मित्र स्वयं चुन सकते हैं और अगर चुने हुए मित्र हैं तो उनमें घनिष्ठता होगी ही। शिक्षा का माध्यम और लक्ष्य भी अगर स्वयं ने चुना है तो उसके प्रति भी जागरूक होंगे। खुद में कुछ कर गुजरने की क्षमता रखेंगे, पूर्ण मनोयोग से सफलता अर्जित करने के लिए तैयार रहेंगे। इस प्रकार जीवन में स्वतंत्रता की बड़ी महत्ता है। यह सूक्ति में जैसे कहा गया है, 'पराधीन सपनेहु सुख नाहीं' अर्थात पराधीन व्यक्ति को तो सपने में भी सुख नहीं मिल सकता है और जब व्यक्ति सुखी नहीं रहेगा तो वह अपने देश को स्वयं को आगे बढ़ाने में कभी सफल प्रयत्न नहीं कर सकता।
यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वतंत्र रहेगा, तो वह मानसिक शांति को भी महसूस करेगा और अगर मन शांत होगा तब वह समाज को कुछ नया देने में सक्षम बनेगा अगर मन अशांत रहेगा तब वह कुछ भी नया नहीं कर पाएगा। प्राचीन समय में हम मानसिक शांति के बारे में सुनते आ रहे हैं। मनुष्य मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए कई प्रयत्न करता है। कई लोग सोचते हैं कि अगर हम एकांत में चले जाएँ तो शायद मानसिक शांति मिलेगी या शायद किसी और विकल्प से शांति मिले क्योंकि अशांत मन और मस्तिष्क समाज के लिए विकास नहीं कर सकता।
ऐसा ही बालकों के लिए भी है बालकों को शांति मिलती है, खेलों से उसके सहपाठियों से यहाँ तक कि अध्यापकों से भी। उदाहरण के लिए जब कोई एक बालक में विद्यालय में प्रवेश करता है तो उसका मन अशांत रहता है क्योंकि उसे लगता है, यहाँ कौन मेरा मित्र होगा, अध्यापक कैसे होंगे, विद्यालय कैसा होगा, क्या मैं यहाँ अपने आप को समायोजित कर पाऊँगा या नहीं ? यह सारे प्रश्न जो है वह बालक के मन में अशांति पैदा करते हैं लेकिन अगर उसे विद्यालय में एक स्वच्छ वातावरण मिले, अच्छे मित्र मिले, अच्छे अध्यापक मिले, खेल का वातावरण मिले, विद्यालय में अगर उसकी बात सुनी जा रही हो, ऐसा अगर माहौल मिले तो बालक निश्चित रूप से मानसिक शांति महसूस करेगा। साथ ही साथ वह विद्यालय और समाज के लिए एक उत्पादक के रूप में कार्य करेगा।
इसलिए ऐसा नहीं है कि कहीं एकांत में चले जाएँ तो वहाँ हमें शांति मिलेगी। मानसिक शांति हमें अपने तरीके से ही सबके बीच में रहकर ही प्राप्त करनी पड़ेगी। लेकिन बालक के लिए परिवार भी महत्व रखता है। परिवार में भी अगर किसी प्रकार से माहौल ठीक ना हो तो बालक के लिए मानसिक अशांति पैदा करता है। इसलिए अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है कि बालक को एक स्वस्थ और स्वच्छ परिवेश प्रदान करें तभी बालक उन्नति कर सकेगा। इस प्रकार देखा जा सकता है कि स्वतंत्रता और मानसिक शांति यह दोनों ही मूल्य बालक और हर व्यक्ति के लिए परम आवश्यक है। अतः उनकी चिंता की जानी चाहिए इनके लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए तभी हम और समाज प्रगति कर पाएँगे।
Krishan
Gopal
The Fabindia
School, Bali
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