विनम्रता एक
अद्भुत मूल्य है। यदि हम विनम्र
होंगे तो ऊँचाइयों पर
अवश्य जाएँगे परन्तु
ऊँचाई पर जाने
के बाद भी
विनम्रता को नहीं छोड़ा
तो वहीं बने
भी रहेंगे। प्राणी मात्र
के प्रति विनम्र
बनना चाहिए। धन और
काया तो कुछ
समय तक साथ
देगी, विनम्र व्यक्ति को
अमर बना देती
है।
विनम्रता अर्थात
झुकना, पर झुकने
का ये अर्थ
नहीं है कि
अधीनता स्वीकार कर
ली।प्रकृति सभी के लिए
विनम्र रहती हैं।
प्राणियों के कल्याण के
लिए अपना सर्वस्व लुटाने
को तैयार है।
मानव अपनी महत्वाकांक्षा को
नहीं छोड़ता। हमारा जीवन
प्रकृति की ही देन
है। विनम्र व्यक्ति हमेशा
सम्मान प्राप्त करता
है। विनम्रता के साथ संतोष
की प्रवृत्ति का
विकास होता है।
सम्पूर्ण रूप से संपन्न
व्यक्ति विनम्रता प्रकट करे तो
प्रशंसनीय है।
अपने
से बड़ों के
सामने झुकना विनम्रता है। गलती का पश्चाताप करना
विनम्रता है।
मनुष्य
नैतिक मूल्यों का
त्याग करते जा
रहा हैं। मूल्यों के
विनाश से जीवन
का स्तर गिरता जा रहा है।
इसलिए ये आवश्यक
हो जाता है
कि हम आने
वाली पीढ़ी में
नैतिक मूल्यों का
विकास करें।
बालकों के काम
की सराहना की
जानी चाहिए। स्कूल
में भी किसी
काम के कुछ
हिस्से को ही
किया हो तो
भी प्रशंसा करें
या प्रोत्साहित करें।
कुछ बालक अंतर्मुखी होते
हैं। उन्हें प्रोत्साहित नहीं
किया तो वे
कभी भी आगे
नहीं आएँगे।
प्रोत्साहित करने
से बच्चा काम
को मनोयोग से
करता है। अन्य
बालकों के सामने
सराहना करने पर
प्रोत्साहन दोनों ओर होता
है। अन्य बालक भी अपना स्थान
बनाने के लिए
प्रयत्न करेंगे। बच्चों का ही
नहीं अपने मित्रों, सहयोगियों, पड़ोसियों की
भी यथा समय
सराहना की जानी चाहिए। प्रशंसा का
उचित स्तर होना
चाहिए। अकारण, आवश्यकता से
अधिक प्रशंसा न
करें। अपना काम निकालने के
लिए प्रशंसा न करें। प्रशंसा का
प्रयोग केवल प्रोत्साहन के
लिए हो।
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali
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