'समय के साथ सब अच्छा होता है’- ऐसा हम सुनते हुए बड़े हुए और हुआ भी क्योंकि ये शब्द हमें आशावान बनाते है। एक आशावादी व्यक्ति की सोच सदैव सकारात्मक होती है और यही उसके पथप्रदर्शन में सहायक होती है । ' आशा ' एक शब्द जो हमारे मन मस्तिष्क में नव जीवन का संचार करती है फिर चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो आशावादी इंसान उस पर सफलता हासिल कर ही लेता है। 'आशा' एक जीवन प्रदायिनी जड़ीबूटी है।
वर्षों से दबा हुआ एक छोटा सा बीज़ आशाओं की बारिश में प्रस्फुटित हो जाता, उसके संघर्ष की कहानी कोई कम आसान नहीं होती परन्तु एक आशा की बूंद उसे दोगुना हौसला प्रदान करती है। फिर वो एक महान और विराट वृक्ष बनकर जीव - जंतुओं की आश्रय स्थली, आते - जाते राहगीरों का विश्राम गृह और असंख्य जीवों को जीवन प्रदायिनी वायु का संचार करता है। अर्थात् एक आशावान व्यक्ति उनके संपर्क में आए अन्य व्यक्तियों को किसी न किसी तरह सकारात्मक तरीके से अवश्य प्रभावित करता है। निराशा का अंधेरा कितना भी छाया हो लेकिन आशा की एक किरण ही काफ़ी होती है उसे मिटाने की । इसलिए हम कितने भी निराश क्यों न हो एक आशावादी सोच और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हमें ऊँचाइयाँ प्रदान करती है।
एक अच्छा और आशावादी शिक्षक छात्रों में नई चुनौतियों को स्वीकारने का गुण पैदा करता है,
उन्हें विषम परिस्थितियों
में भी हिम्मत न हारने का कौशल सिखाता है। परीक्षा और परिणाम की चिंता से परे ले जाकर उनमें समाहित शक्तियों का अहसास कराता है,
उसे प्रोत्साहित करता है, कुछ अच्छाइयों के लिए प्रेरित करता है,
उसकी सराहना करता है,
तभी वह सीखने के लिए आतुर होगा। छात्रों को उनकी चिंताओं से ज्यादा नए कौशलों पर ध्यान आकर्षित करता है , जैसे - समाज में मुखर वक्ता बनना, दया और सहयोग की भावना रखना, दूसरों को उनकी अंतर्निहित शक्तियों का आभास करवाना, आदि।
" एक अच्छा शिक्षक आशा को प्रेरित कर सकता है, कल्पना को प्रज्वलित कर सकता है और सीखने का प्रेम पैदा कर सकता है।" - ब्रेड हेनरी
वैसे ही एक शिक्षक जो आशावान है वो न केवल अपने विद्यार्थियों को बल्कि आसपास के सामाजिक ढाँचे को भी भविष्य के प्रति आशावान बनता है। जब आशावादी विचारधारा का एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों
को यह शिक्षा देगा तो उनके माध्यम से माता - पिता, परिवार, आस - पड़ोस और पूरे समाज में वो एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होगा ।
आशावान व्यक्ति को मित्र बनाना और उसकी मित्रता को निभाना एक अहम गुण है। हम मित्र बनाते समय यह नहीं देखते कि उनमें कौनसे गुण समाहित है, परन्तु एक मित्र का कर्तव्य होता है कि वो अपने मित्र के प्रति निष्ठावान हो, एक - दूसरे के हृदय की भावनाओं को जाने, स्नेह, प्रेमाधार से और बिना किसी शर्त के सहयोग करें क्योंकि परिवार के बाद मित्र ही व्यक्ति को दिशा निर्देश देता है।
कवि रहीम जी ने मित्रता पर अनेक दोहे लिखे जिनमें से एक है -
"कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपत्ति - कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।।"
अर्थात् सच्चा मित्र वहीं होता है, जो विपत्ति के समय साथ दे। मित्रता केवल सुख के समय में साथ नहीं देती बल्कि दुख में भी ढाल बनती है।
मित्रता हम उम्र में होनी चाहिए तथा कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। यह निस्वार्थ भाव से निभाई जाती है। श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती जगजाहिर है जो भावनाओं की कद्र करना सिखाती । अतएव मित्रता में हम अपने मन की भावनाओं, परेशानियों को साझा कर सकते है। कहते है कि मित्र यदि सज्जन हो तो बार- बार रूठने पर भी मना लेना चाहिए जैसे मोतियों के हार टूटने पर बार - बार उन्हें माला में पिरोया जाता है, इसलिए मोती जैसे महंगे सज्जन मित्रों की मित्रता के लिए हमेशा समझौता कर लेना चाहिए क्योंकि मित्रता दुख को आधा और सुख को दुगुना कर देती है।
कक्षा में शिक्षक को बालकों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए जिससे वो अपनी परेशानी, कठिनाइयों को बेहिचक साझा कर सके और सीखने - सिखाने की प्रक्रिया खुले विचारों से हो सके।
बालकों को भी अपने सहपाठियों के साथ अच्छी मित्रता निभानी चाहिए जैसे - एक- दूसरे की मदद करना, दूसरों की भावनाओं की कद्र करना, अपनी वस्तुओं को साझा करना, किसी भी प्रतियोगिता में प्रतिभागी जरूर बने परन्तु विरोधी नहीं आदि।
Urmila Rathore
The Fabindia School, Bali
ReplyDeleteसुन्दर लेख 👏👏👏
"कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपत्ति - कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।।"