जो
किसी से न
डरे वह साहसी
है, ये साहस
की परिभाषा नहीं
है। हर व्यक्ति के
भीतर भी डर
रूपी चिनगारी दिखाई
पड़ती है किन्तु जो
डर को जीत
ले वही साहसी
है। कई बार काम
करने से पहले
हम कतराते हैं।
एक प्रश्न मस्तिष्क में
कौंध ही जाता
है -'मुझे सफलता
नहीं मिली तो,
कहीं मैं हार
तो नहीं जाऊँगा
?' इस
डर को जीतना
ही साहस है।
कभी यह स्मरण
नहीं रहता कि
यदि हार गए
तो एक नया
अनुभव मिलेगा। जीत गए
तो प्रयास सफल
होगा ही।
सच्चा साहसी
वही है जो
अपनी सफलता का
धैर्य से प्रतीक्षा करे।
विद्यार्थी के लिए ये
दोनों मूल्य आवश्यक
है।एक नन्हा बालक खूब अभ्यास करता
है, तब कहीं
जाकर लिखने के
लिए तैयार होता
है। ऐसे नन्हे बालकों
के शिक्षक भी
धैर्य की प्रतिमा होते
हैं। एक खिलाड़ी
लगातार अभ्यास करता
है, तब कहीं
जाकर उसे प्रदर्शन करने
का अवसर मिलता
है। ठीक ऐसे ही
एक गायक नियमित
साधना करता है।
ये सब धैर्य
से ही संभव
हो सकता है।
दशरथ
मांझी ने पहाड़
तोड़ने का साहस
दिखाया, धैर्य भी
रखा। कई लोग उसके
काम पर हँसे भी, समय भी
बहुत लगा किन्तु उसने यह प्रण न छोड़ा। जो ठाना वह करके दिखाया। मुश्किलें भी
आयी होगी पर
पीछे मुड़कर नहीं
देखा। इसलिए आज वह
साहस और धैर्य
का पर्याय बन
गया। हम अपनी गलतियों को
स्वीकार करने में घबराते
हैं।
यदि
गलतियों को स्वीकारा जाए
तो साहसी व्यक्ति कहलाएँगे। बच्चे भी कतराते
हैं, उनका मार्गदर्शन करना
चाहिए। अपनी गलतियों को
स्वीकार करना और उससे
प्रेरणा लेना कि भविष्य
में इस गलती को दोहराया नहीं
जाएगा। साहस और
धैर्य दोनों ऐसे
मूल्य है, जिसको
अपनाकर व्यक्ति सफलता
की ओर
अग्रसर होगा ही।
विद्यार्थियों
को आने वाले
समय में कई
सफलताएँ अर्जित करना है।
अतः इन मूल्यों की
विशेष आवश्यकता जान
पड़ती है। विद्यार्थियों को
राह दिखाने की
जिम्मेदारी शिक्षकों और अभिभावकों की
है। अतः यह भी
आवश्यक हो जाता
है कि सर्वप्रथम ये
मूल्य शिक्षकों और
अभिभावकों में विकसित हो।
Krishan Gopal
The Fabindia School
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