वर्तमान में
गृहकार्य देने की परंपरा
बदल गयी है।
बालको को गृहकार्य दिया
जाना चाहिए ऐसा
मेरा मानना है।
लेकिन गृहकार्य रचनात्मक होना
चाहिए। केवल किताबों या
अन्य किसी स्थान
से उठाकर देने
में मानसिक विकास
नहीं हो पाता।
जब ऐसा गृहकार्य दिया
जाएगा तो बालक
भी चतुर है,
वह भी कहीं
न कहीं से
लिख देगा, और
वह भी इसलिए
कि उसके गुरूजी
ने दिया है
तो जैसे-तैसे
करके पूरा करना
है। अब देखा जाए
तो उसने अपने
मन से तो
कुछ किया ही
नहीं, सोचिए इसप्रकार का
गृहकार्य बालक को कोई
लाभ देगा।
गृहकार्य ऐसा
हो जिसमें बालक
का चिंतन कौशल बढ़े,
या उसे अपनी
सामग्री एकत्र करने के
लिए खोज-बीन
करनी पड़े। गृहकार्य बालक
की रुचि के
अनुसार भी होना
आवश्यक है। यदि रुचिकर
नहीं हुआ तो
बालक इधर-उधर
से करेगा या
नहीं करेगा। बालकों
की रुचि को
जानना अध्यापकों के
लिए आवश्यक है।
तभी तो उसके
लिए उचित गृहकार्य की
व्यवस्था की जा सकेगी।
आजकल
कई स्थानों पर
एक प्रवृत्ति देखने
में आ रही
है कि अभिभावक अपने
बालकों को ट्युशन
भेजते है। पढ़ने के
लिए अलग गृहकार्य करने
के लिए अलग।
यदि गृहकार्य पेचिदा
होगा तो बालकों
को छोड़ो उनके
अभिभावकों को भी समझ
में नहीं आएगा।
ऐसे में अभिभावकों के
लिए एक ही
मार्ग बचता है
और वह है
ट्युशन । इसलिए
गृहकार्य रचनात्मक होना चाहिए। जहाँ तक
बात है ट्युशन
की यदि लगे
कि वास्तव में बालक पढ़ने में
कमजोर है तो
ट्युशन भेज सकते
है, परन्तु वह
भी स्कूल के
अध्यापक के पास नहीं
किसी और के
पास।
Krishan
Gopal
The Fabindia
School, Bali
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