सच
ही कहा गया
है कि आशा
अमर धन है।
व्यक्ति जब निराश हो
जाता है तब
कुछ भी करने
की इच्छा नहीं
रहती। यदि इसीप्रकार निठल्ला बैठ
जाएगा तो प्रगति
का चक्र ही
रुक जाएगा। निराशा का
भाव मन में
जगते देर नहीं
लगती। ऐसे अवसर तो
जैसे तैयार ही
बैठे है। जब कुछ
करने की चाह
हो और उसमें
असफलता मिले तो
निराश हो सकते
है। उचित सहयोग न
मिले तो निराश
हो सकते है।
अर्थात निराश होने
के कई बहाने
है।
जीवन
में उम्मीद होना
बहुत आवश्यक है।
ऐसे जीवन का
कोई प्रयोजन नहीं
जो निराशा से
घिरा हो। आगे
बढ़ने के लिए
यह आवश्यक है
कि मन में
आशा की किरण
जगाए रखें। किसी कवि
की कविता कहती
है -
निराशा के दीप
बुझाकर,
आशाओं के दीप
जलाएँ,
दसों दिशा में
फैले तम को,
मिलकर कोसों दूर
भगाएँ
हमें
सकारात्मक सोच रखनी चाहिए,
कठिन और सुखद
दिन तो आते
रहते हैं। निराशा व्यक्ति को
पतन की और
ले जाती है
जबकि आशा एक
नई शक्ति का
संचार करती है।
परोपकार करने से आशा
बलवती होती है।
अपने सामर्थ्य के
अनुसार सेवा कार्य
अवश्य करें।
आशा
जीवन का मार्ग
प्रशस्त करती है। प्रसन्नचित मन
और सकारात्मक सोच
रखने वाले व्यक्ति को
कभी बीमारियाँ नहीं
घेरती। जीवन में
लक्ष्य प्राप्ति करनी
है तो आशावादी बने
रहो, चाहे असफलता
मिले किसी काम
में, फिर भी
आशा दामन न छोड़ो।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों
में -
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
Krishan
Gopal
The Fabindia School, Bali
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