कहानी उन दिनों की है – जब मै छठी कक्षा में पढ़ता था | उन दिनों बच्चे स्कूल के अनुशासन एवं विधान का बड़े सख़्ती से पालन करते थे | ज़रा सा भी देर विद्यालय पहुँचने पर गुरूजी के कोप का शिकार होना पड़ता था | अक्सर गुरूजी किसी न किसी विद्यार्थी के अपराध पर उठ बैठक करते या डण्डे से स्वागत करते नज़र आते, किन्तु वे बच्चों से स्नेह भी बहुत करते थे|
उन दिनों माताजी एवं पिताजी भी अपने बच्चों के अनुशासन के प्रति बड़ा सख्त थे | और उन्हे विद्यालय और गुरूजी की शिकायत सुनना पसन्द नहीं था | वे अपने बच्चों की समस्त जिम्मेदारी विद्यालय और शिक्षकों पर छोड़ देते थे|
उन दिनों हमारे सहपाठियों का काम बड़ा अनूठा था | विद्यालय आते जाते वक्त राह में सड़क किनारे या मकान के आहते में पड़ने वाले मौसमी फलों को झुण्ड बनाकर तोड़ना और अन्य साथी द्वारा खतरा होने पर दूर से ही अपने साथियों को इसारे से या मुँह से सीटी बजाकर या विभिन्न प्रकार की आवाज देकर सावधान करना |
उन दिनों भोजनावकाश (टिफ़िन) के समय हम लोग विद्यालय से थोड़ी दूर “फ़िल्टर हॉउस” में आ जाते जहाँ चारों और शान्ति ही शान्ति थी | वहाँ दो विशाल विशाल पोखर थे, जिसके मध्य से होकर लगभग पन्द्रह फीट चौड़ी घास युक्त सड़क जिसकी लम्बाई लगभग सौ फीट लम्बी थी | दोनों पोखरों की लम्बाई भी क्रमशः नब्बे और चौड़ाई क्रमशः पचहत्तर फीट रही होगी | गहराई लगभग अथाह रही होगी|
हम लोग भोजनावकाश के समय “फ़िल्टर हाउस” रोज जाया करते थे | वहाँ जाने का मुख्य कारण वहाँ बत्तखों के दलों द्वारा दोनों पोखरों में झुण्ड के झुण्ड माँ बत्तखों द्वारा अपने अपने नन्हें-नन्हें शिशुओं को अपनी पीठ पर लादकर धीरे से जल में उतरना और पोखर के जल में नियमित चक्कर लगाना, यह क्रिया माँ बत्तख द्वारा दो-तीन दिन तक लगातार दोहराना, यह दृश्य हमें अत्यंत आह्लादित और आनन्दित करता था | कुछ दिनों बाद माँ बत्तख रोज की तरह अपने शिशुओं को अपनी पीठ पर लादकर धीरे से पोखर में उतर कर पोखर के मध्य में चली गई और अपने नन्हें शिशुओं की जान की परवाह किये बिना डुबकी लगाई…. कुछ ही पल में नन्हें-नन्हें शिशु डूबने उतरने लगे और माँ बत्तख उन बच्चों की गतिविधियों पर पैनी नज़र डाले अपने सारे बच्चों की क्रिया विधि को परखती रहती साथ ही चक्र की भाँति उन बच्चों के चारों और चक्कर लगती रहती, जब कोई शिशु जल में डूबने लगता तब वह विद्युत् गति से उसके पास जाकर उसे अपनी पीठ का सहारा देकर उसे बचा लेती किन्तु शिशु के स्वस्थ्य होते ही वह पुनः जल में डुबकी लगाकर उसे जल में छोड़ देती | इस प्रकार वह अपने शिशुओं जल में तैरना सिखाती थी | यह दृश्य देखकर हम लोग काफ़ी आनन्दित होते |
एक दिन इन्हीं दृश्यों को देखते-देखते काफ़ी देर हो गई, भोजनावकाश के बाद की कक्षाएँ शुरू हो गई, जब अध्यापक ने हम लोगों की टोली के अनुपस्थित होने का कारण कक्षा मॉनिटर से पूछा तब शायद किसी ने हम लोगों की शिकायत अध्यापक महोदय से कर दी | अध्यापक महोदय ने कुछ लड़कों को हमें बुलाने भेजा……. उसके बाद हमारी जो पिटाई हुईं…….. वह…. मुझे आज तक याद है.. यद्यपि मैंने शिक्षक द्वारा दण्डित करने की बात घर पर कभी नहीं बताई क्योंकि यदि बताता तो शायद और मार घर पर भी पडती..
आज इतने वर्षों के बाद जब मैं बचपन की बातों को याद करता हूँ तो मुझे माँ बत्तख की घटना से सीख मिलती है की छोटे से प्राणी माँ बत्तख न केवल कुशल प्रशिक्षक है, बल्कि मातृ-गुण से भी परिपूर्ण है|
- धर्मेन्द्र पोद्दार
भाषा विभाग प्रमुख, सेक्रेड हार्ट स्कूल, सिलीगुड़ी
उन दिनों माताजी एवं पिताजी भी अपने बच्चों के अनुशासन के प्रति बड़ा सख्त थे | और उन्हे विद्यालय और गुरूजी की शिकायत सुनना पसन्द नहीं था | वे अपने बच्चों की समस्त जिम्मेदारी विद्यालय और शिक्षकों पर छोड़ देते थे|
उन दिनों हमारे सहपाठियों का काम बड़ा अनूठा था | विद्यालय आते जाते वक्त राह में सड़क किनारे या मकान के आहते में पड़ने वाले मौसमी फलों को झुण्ड बनाकर तोड़ना और अन्य साथी द्वारा खतरा होने पर दूर से ही अपने साथियों को इसारे से या मुँह से सीटी बजाकर या विभिन्न प्रकार की आवाज देकर सावधान करना |
उन दिनों भोजनावकाश (टिफ़िन) के समय हम लोग विद्यालय से थोड़ी दूर “फ़िल्टर हॉउस” में आ जाते जहाँ चारों और शान्ति ही शान्ति थी | वहाँ दो विशाल विशाल पोखर थे, जिसके मध्य से होकर लगभग पन्द्रह फीट चौड़ी घास युक्त सड़क जिसकी लम्बाई लगभग सौ फीट लम्बी थी | दोनों पोखरों की लम्बाई भी क्रमशः नब्बे और चौड़ाई क्रमशः पचहत्तर फीट रही होगी | गहराई लगभग अथाह रही होगी|
हम लोग भोजनावकाश के समय “फ़िल्टर हाउस” रोज जाया करते थे | वहाँ जाने का मुख्य कारण वहाँ बत्तखों के दलों द्वारा दोनों पोखरों में झुण्ड के झुण्ड माँ बत्तखों द्वारा अपने अपने नन्हें-नन्हें शिशुओं को अपनी पीठ पर लादकर धीरे से जल में उतरना और पोखर के जल में नियमित चक्कर लगाना, यह क्रिया माँ बत्तख द्वारा दो-तीन दिन तक लगातार दोहराना, यह दृश्य हमें अत्यंत आह्लादित और आनन्दित करता था | कुछ दिनों बाद माँ बत्तख रोज की तरह अपने शिशुओं को अपनी पीठ पर लादकर धीरे से पोखर में उतर कर पोखर के मध्य में चली गई और अपने नन्हें शिशुओं की जान की परवाह किये बिना डुबकी लगाई…. कुछ ही पल में नन्हें-नन्हें शिशु डूबने उतरने लगे और माँ बत्तख उन बच्चों की गतिविधियों पर पैनी नज़र डाले अपने सारे बच्चों की क्रिया विधि को परखती रहती साथ ही चक्र की भाँति उन बच्चों के चारों और चक्कर लगती रहती, जब कोई शिशु जल में डूबने लगता तब वह विद्युत् गति से उसके पास जाकर उसे अपनी पीठ का सहारा देकर उसे बचा लेती किन्तु शिशु के स्वस्थ्य होते ही वह पुनः जल में डुबकी लगाकर उसे जल में छोड़ देती | इस प्रकार वह अपने शिशुओं जल में तैरना सिखाती थी | यह दृश्य देखकर हम लोग काफ़ी आनन्दित होते |
एक दिन इन्हीं दृश्यों को देखते-देखते काफ़ी देर हो गई, भोजनावकाश के बाद की कक्षाएँ शुरू हो गई, जब अध्यापक ने हम लोगों की टोली के अनुपस्थित होने का कारण कक्षा मॉनिटर से पूछा तब शायद किसी ने हम लोगों की शिकायत अध्यापक महोदय से कर दी | अध्यापक महोदय ने कुछ लड़कों को हमें बुलाने भेजा……. उसके बाद हमारी जो पिटाई हुईं…….. वह…. मुझे आज तक याद है.. यद्यपि मैंने शिक्षक द्वारा दण्डित करने की बात घर पर कभी नहीं बताई क्योंकि यदि बताता तो शायद और मार घर पर भी पडती..
आज इतने वर्षों के बाद जब मैं बचपन की बातों को याद करता हूँ तो मुझे माँ बत्तख की घटना से सीख मिलती है की छोटे से प्राणी माँ बत्तख न केवल कुशल प्रशिक्षक है, बल्कि मातृ-गुण से भी परिपूर्ण है|
- धर्मेन्द्र पोद्दार
भाषा विभाग प्रमुख, सेक्रेड हार्ट स्कूल, सिलीगुड़ी
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