ख़ुशी
को शब्दों में
वर्णित करना कठिन
है, इसे महसूस
किया जा सकता
है। अच्छा जीवन
जीने के लिए ख़ुशी होना बहुत जरुरी है। हर छोटी-छोटी बात में
खुशियाँ ढूँढी जा सकती
है। आवश्यकता केवल
इस बात की
है कि हमें
हमारे मस्तिष्क को
इस तरह प्रशिक्षित करें
कि वह हर
क्षेत्र में ख़ुशी का
आभास करें।
विभिन्न स्थितियों में
अति-उत्साही या
उदास न होना,
वर्तमान में रहना, पुरानी
बातों पर विचार
नहीं करना, ख़ुशी
का जरा सा
पल देने वालों
के प्रति आभारी
रहना, सकारात्मक सोच
रखना और सकारात्मक सोच
रखने वालों के
संपर्क में रहना
। इन बातों से
खुशियाँ अर्जित की जा
सकती है। विद्यार्थियों के लिए
खुश रहना और
भी अधिक महत्वपूर्ण हो
जाता है। खुश रहने
वाला व्यक्ति सीखने
में अग्रणी होता
है। कक्षा का वातावरण भी
खुशनुमा होने से बच्चे मन
लगाकर सीखते हैं।
इसलिए यह आवश्यक
हो जाता है
कि कक्षा का
वातावरण ऐसा बनाया जाए
कि बच्चे को
उबाऊ न लगे।
बालकों की प्रवृत्ति चंचल
होती है, इसलिए
सहनशीलता की कमी मिलना
संभव है। वैसे देखा
जाए तो शिक्षक
और विद्यार्थी के
कई किस्से मिलते
है, जिसमें विद्यार्थी द्वारा
सहनशीलता प्रदर्शित की गई हो।
आरुणि की कथा
हो या परशुराम शिष्य
कर्ण की अनेक
उदाहरण मिल जाते
हैं। ये कथाएँ
प्राचीन भी हैं, वर्तमान में
सहनशीलता का अभाव पाया
जाता है। यह
अभाव लक्ष्य से
भटकता है। फलस्वरूप असफलता
हाथ लगती है।
सहनशील बनकर हम
अपनी मंजिल की
ओर अग्रसर हो
सकते हैं। सहनशीलता जिसमें
नहीं होती है
वह क्रोधी स्वभाव
का हो जाता
है। यह क्रोध गलत
निर्णय लेने के
लिए प्रेरित करता
है। अतः पतन
होना लाज़मी है।
असफलता मिलने पर
भी सहनशील बने
रहें, आगे जाकर
सफलता भी मिलेगी। संकट
और तनाव को
हावी मत होने
दीजिए। सहनशील व्यक्ति अपने
लोगों में सम्मान
पाता है। सहनशीलता से
नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होकर
नई सकारात्मक ऊर्जा
का संचार होता
है। अतः सभी को
विशेषकर विद्यार्थियों
को सहनशील बनना
चाहिए। उन्हें आगे कई
सफलताएँ अर्जित करनी हैं।
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali
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