विद्यार्थियो को गृह कार्य मिलना चाहिए। गृह कार्य करने से बच्चे व्यस्त रहते हैं और उस पाठ का दोहरान भी हो जाता हैं इससे बच्चे की लेखन एवं वाचन क्षमता का विकास होता है। गृह कार्य रचनात्मक, क्रियात्मक होने चाहिए जिसे करने से विद्यार्थी में जीवन कौशल का विकास हो सके, सोचने समझने की क्षमता बढ़े। गृह कार्य से विद्यार्थियों में सीखने की क्षमता का पता लगता है इसके अंतर्गत कक्षा में शिक्षक द्वारा पाठ पढ़ाने के बाद ही विद्यार्थियों को गृह कार्य दिया जाता है गृह कार्य एवं कक्षा कार्य के द्वारा ही मालूम होता है कि विद्यार्थियों को पाठ समझ में आया या नहीं। नहीं तो समझाने के लिए कोई नया तरीका अपनाते हैं।
गृह कार्य करने से विद्यार्थियों की कक्षा में एकाग्रता बढ़ती है। गृह कार्य ऐसा देना चाहिए जिससे बच्चा खुशी-खुशी कर सके। माता-पिता भी अपने बच्चों की पढ़ाई पर नजर रख पाते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में कैसा है और उसको पढ़ाई में कहां ज्यादा परेशानी आ रही है स्कूल में जाकर शिक्षक से पढ़ाई के बारे में बात कर सकते हैं और पढ़ाई करने के तरीके में सुधार करने में सहयोग दे सकते हैं। गृह कार्य पुनरावृति स्मृति को बढ़ाने में मदद करता है कक्षा की अवधि के दौरान शिक्षकों को, छात्रों को पढ़ाने के लिए सीमित समय होता है इसलिए गृह कार्य देकर सीखने का समय बढ़ा देते हैं विद्यार्थियों ने कक्षा में क्या सीखा गृह कार्य के ही जरिए मालूम होता है। विद्यार्थी गृह कार्य को बोझ नहीं समझे बल्कि समय पर पूरा करने की कोशिश करें। कई बच्चे खुद ही इतने समझदार होते हैं कि अपनी पढ़ाई की समय सारणी बनाकर रखते हैं। बच्चों को अगर अभिभावक भी पढ़ाने में मदद करें तो वह ज्यादा बेहतर होगा।
कुछ अभिभावक व बच्चे गृह कार्य के विरुद्ध भी होते हैं वह गृह कार्य को केवल समय बर्बादी मानते हैं।
गृह कार्य कम और रोचक पूर्ण देना चाहिए जिसे बच्चा खुशी-खुशी कर सके। अधिक ग्रह कार्य से बच्चों का बचपन मुरझा रहा है गृह कार्य एक सीमा तक ही सही रहता है जरूरत से ज्यादा गृह कार्य से एक पढ़ाई में रुकावट करता है और कुछ नया नहीं सीख पाता है गृह कार्य पूरा नहीं होने के डर से बच्चे कहीं घूमने नहीं जा सकते रात को आराम की नींद नहीं ले पाते हैं जिससे मानसिक रोग के शिकार हो जाते हैं अधिक गृह कार्य मिलने से बच्चा पूरा नहीं कर पाता है तो परिजन ही पूरा करते हैं। अतः बच्चों को गृह कार्य बच्चों की क्षमता के अनुसार मिलना चाहिए ताकि बच्चे उसे सहजता से एवं रुचि पूर्वक कर सके।
शिक्षक को अपने विषय को रुचि पूर्वक बनाकर पढ़ाना चाहिए ताकि बच्चा आसानी से समझ सके अगर उसको समझ में नहीं आएगा तो अभिभावक को बार बार पूछेगा अभिभावक परेशान होकर बच्चे के ट्यूशन लगा देंगे ट्यूशन में पढ़ाने का तरीका अलग और विद्यालय में अलग होता है तो विद्यार्थी का दिमाग दो भागों में विभाजित हो जाता है इसलिए विद्यालय में ऐसे शिक्षक रखने चाहिए जो अनुभवी एवं प्रशिक्षित हो जो बच्चों की भावनाओं को समझ प्रकरण को रोचक बना कर उन्हें कक्षा में समझाएं और गृह कार्य भी देवे तो उसे छात्र खुशी खुशी सहजता से स्वयं ही कर सके।
Usha Panwar
upr4fab@gmail.com
The Fabindia School Bali.
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