सम्मान
या आदर के सम्बन्ध में
यदि हम विचार करें
तो हम पाते हैं
कि यह भाव अथवा
भावना मानव मन
के अंदर अन्तर्निहित होता है | कुछ बच्चों में दूसरे व्यक्ति या अपनों से
बड़े के लिए सम्मान
व आदर
भाव खुद व खुद परिलक्षित
होते हैं | यह भाव उनमें
जन्मजात नहीं होती बल्कि उनके संस्कार, समाज,
परिवेश एवं संगत का असर होता
है | इसका अर्थ यह बिलकुल ही
नहीं है कि इसके
विपरीत परिस्थिति
में पलने वाले बच्चे बिलकुल असभ्य ही होते हैं
|
मुझे
इस सन्दर्भ में एक कहानी याद
आती हैं | बात सन 1997-98 की हैं…उस
समय में अपनी घर दार्जीलिंग
मोड स्थित पैतृक निवास स्थान पर ही ट्यूशन
पढ़ाया करता था एवं स्वयं
एक प्राइवेट स्कूल का
संचालन
किया करता था |
उस
वक्त मैं लेखाशास्त्र और हिन्दी एबं
वाणिज्य बिषय से वर्ग एकादस
एवं बी कॉम के
छात्र-छात्राओं को पढ़ाया
करता था | उन
दिनों न जाने कितने
छात्र-छात्रायें पढ़ा करते थे | यदि सत्य कहूँ तो समय के
ढलते क्रम में वे सब
बातें
एवं घटनाएं सिर्फ यादें बनकर रह गई…मैं
भी समय के अंतराल के
साथ भूलता चला गया | मैं
बर्ष 2005 मैं सेक्रेड हार्ट स्कूल कर्सियांग और अब सिलीगुड़ी
में केवल हिन्दी पढ़ाने में लीन हो गया…पिछली
सारी यादें…सिर्फ यादें ही रहे गई…जो धीरे-धीरे मिटती चली गई | मुझे
उन दिनों की घटनाओं मे
से एक लड़के की
छवि याद आती है जो बर्ष
1997 से 2000 तक ही मेरे पास
अध्ययन करने आया करता था…वह स्वाभाव से
बड़ा उद्दण्ड, बेपरवाह एवं कर्तव्यहीन होने के साथ -साथ
बड़ा बद्तमीज़ था और मैं
उसके व्यवहार से उन दिनों
उदाशीन रहा करता था |
समय
समय पर मैं अपने
घर सिलीगुड़ी अक्सर आया जाया करता था…एक
दिन शाम के समय लगभग
4:30 बजे सेठ श्रीलाल मार्केट के समीप मैं
किसी कार्यवश खड़ा था, कि अचानक
एक युवक और एक युवती
पीछे से “सर“ कहता हुआ आया और मेरे चरण
छूने के पश्च्यात अपनी
पत्नी और बच्चे से
भी चरण छूकर प्रणाम करने को कहा | इसके
उपरांत मुझसे आशीर्वाद देनेको कहा…मैं भौचक्का सा रह गया
| मुझे उस युवक कि
छवि बिलकुल याद नहीं थी…मुझे आश्चर्य चकित होता
देख उसे लगा कि मैं पहचान
नहीं रहा हूँ…फिर उसने बड़ी सभ्यता और शालीनता के
साथ अपना
और
अपनी पत्नी और बच्चे का
परिचय करवाया और कहा “सर
आज से लगभग 22-23 वर्ष
पहले मैं आपके
घर लेखाशास्त्र पढ़ने आया करता था… और फिर मेरे
मानस पटल पर उसके चेहरे
की धुंधली सी छवि
मानस पटल पर उभरने लगी…मै सोचने लगा यह वही गोपाल
है जो उद्दण्ड, लापरवाह,
बेपरवाह और
शरारती के साथ बद्तमीज
भी था…कितना.. बदल.. गया…यदि सच कहूँ तो
मै इस घटना के
बाद सोचने
के लिए विवश हूँ कि कैसे लोग
कहते है - कि आज कल
के बच्चे बड़ो का सम्मान नहीं करते…समय के सब कुछ
बदलता है बच्चों का
व्यवहार भी समय के
साथ परिवर्तन होता है… जो सकारात्मक
और समाजोपयोगी..शाबित होता है...|
- Sangharsh Chettri <sangharsh.chettri88@gmail.com> for Transformers at Sacred Heart School, Siliguri
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