अपनी बात को व्यक्त करने के दो माध्यम होते हैं। मौखिक और
लिखित जब हम अपने विचार बोलकर व्यक्त करते है तो वह मौखिक भाषा होती है और लिखकर व्यक्त
करते है तो वह लिखित भाषा होती है। व्यक्ति दूसरों से सुनकर व समझकर पहले बोलना सीखता
है। फिर धीरे-धीरे वह लिखना सीखना शुरू करता हैं। छोटे बच्चों को
लेखन सिखाने के लिए सबसे पहले उनके हाथ में पेन्सिल न पकड़ा कर रंग पकड़ाने चाहिए। सर्वप्रथम
बच्चों को अपनी सुविधानुसार रंगों का कागज़ पर उपयोग करने
की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। ताकि वह स्वतंत्र रूप से रेखाएँ एवं आकृतियाँ बनाकर अपनी
अँगुलियों के बीच में पकड़ बनाने में सक्षम हो सके। जब वह पेन्सिल या रंग पकड़ना अच्छी
तरह से सीख जाएँगे तो फिर उन्हें अक्षरों
की बनावट में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
धीरे-धीरे वे पहले अक्षर लिखना व उसके बाद में
अक्षरों व मात्राओं को जोड़कर पढ़ना व उसके पश्चात् लिखना सीखते हैं। उसके बाद में बारी
आती है, लेखन सुधारने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का ध्यान रखने की तो सर्वप्रथम
जिस विषय पर लिखना है उसके बारे में बहुत सारा साहित्य पढ़े। लिखावट का ढाँचा तैयार
करें। महत्वपूर्ण बिन्दुओं की सूची बनाए। आसान शब्दों का उपयोग करें ताकि अधिक
से अधिक लोग आप का लेख समझ पाएँ। संक्षिप्त में पूरी बात समझने की कला
सीखें। छोटे अनुच्छेद, शब्दों के बीच में सही जगह, सही शब्दों
का सही आकार, शब्दों का प्रकार यह सब छोटी-छोटी बातें
काफी महत्वपूर्ण हैं। किसी भी बिंदु पर अधिक विस्तारण और
किसी भी बिंदु पर अधिक संक्षिप्तिकरण
से बचें। एक बिंदु या एक विषय लेख में दो या तीन बार दोहराएँ नहीं। लेख में व्याकरण का भी विशेष ध्यान रखें।
Ayasha Tak
atk4fab@gmail.com
The Fabindia School, Bali
No comments:
Post a Comment