आज सारी दुनिया के सामने परिवार को बाँधे रखना सबसे बड़ा प्रश्न है। लोग एक-दूसरे को समझने के बजाय अहं और भौतिकता का शिकार होकर प्रगति की दौड़ में अंधाधुंध भागे जा रहे हैं और पारिवारिक मूल्य पीछे छूटते जा रहे हैं। माता-पिता की इन महत्वाकांक्षाओं के टकराव से परिवार टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं। इस बिखराव का सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। वे स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। उनका ध्यान शिक्षा से हट जाता है और वे दूसरों को आकर्षित करने के लिए असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। इन टूटे परिवारों के बच्चे जब विद्यालय में आते हैं, तो वहाँ वे प्रेम और सहानुभूति खोजते हैं। वे कक्षा में अन्य छात्रों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।
-Caring Icons, The Iconic School Bhopal
उनके असामान्य व्यवहार का नकारात्मक असर अन्य छात्रों पर पड़ता है। ऐसे में एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। विद्यालय बच्चे का दूसरा घर है। जहाँ वह अपने घर के बाद अधिकाँश समय बीतता है। इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वह छात्र के लिए उपयुक्त वातावरण बनाए और मनोवैज्ञानिक ढंग से उससे बात करे। उसे भावनात्मक संबल दें, उसके दिल में जगह बनाए। ताकि वह अपनी बात खुलकर कह सके। जब शिक्षक और छात्र सहज होकर बात करेंगे, तभी इस समस्या का निदान हो सकेगा। इसके लिए धैर्य, समर्पण और कुशलता की आवश्यकता है। कक्षा में गतिशीलता, रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की आज़ादी होनी चाहिए। छात्र स्वयं करके सीखे। उसकी प्रतिभा का उचित प्रदर्शन और आकलन हो। जिससे वे खुशहाल और प्रतिभासम्पन्न होकर अपना भविष्य उज्जवल बनाए।
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