रावण
तुम व्यर्थ ही बदनाम हुए.....
महाज्ञानी, तपस्वी शूरवीर योद्धा थे तुम
अपनी बहन को प्यार, मान और सम्मान देता थे तुम
तभी तो उसका अपमान न सह सके
और क्रोध के आवेश में एक गलत कदम उठा लिया तुमने
मर्दों की लड़ाई में एक औरत को खींच लिया तुमने
न पास गए उसके.....
न छुआ उसे... ....
न कुदृष्टि डाली उसपर......…
अपनी इस गलती की सजा में क्या पाया तुमने
कुल का सर्वनाश....
मरने के बाद भी प्रतिदिन बदनामी की मौत.....
लेकिन आज तो एक नहीं कई
विकराल राक्षस खुले आम घूम रहे हैं
अपने ज़हरीले.... बड़े-बड़े रक्त पिपासु दाँतों के साथ
वो सीता का हरण ही नहीं करते
खींचते.... मारते..... नोचते..... खसोटते हैं
उसकी इज़्ज़त को तार-तार कर देते हैं
इतने पर भी दरिंदे नहीं रुकते
सिसकती..... थरथराती.... सीता को आग के हवाले कर देते हैं
कुछ बेशर्म रक्षक बनकर बैठे हैं
जो ढिठाईं से हँसते हैं
बेशर्मी से समय जाया करते हैं
तब तक........
जब तक सीता सुपुर्दे ख़ाक न हो जाए
फिर बहुत-सा हो-हल्ला ...... मोमबत्तियों की रौशनी
कहाँ खो गई वह संस्कृति?
जब एक पत्नी के हरण पर लंका दहन हो जाती थी
एक महिला का सम्मान हनन होने पर महाभारत हो जाती थी
बस बहुत हुआ अब .......
छप्पन इंची सीना वाले अब तोड़ो ख़ामोशी.....
अपना रौद्र रूप दिखाओ
खोलो अपना नेत्र तीसरा....
मानवता के हत्यारों को सूली पर लटकाओ
कब तक चीखें और आर्त्तनाद सुनकर कान बंद करोगे
जलती रहेंगी बेटियाँ आँख बंद करोगे
कर दो ऐसा हाल,
दो ऐसी दर्दनाक मौत
कि सोचने पर ही रूह कापें उनकी
गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा।
इस देश को बेटी देने मे, भगवान भी जब घबराएगा।।
-कल्पना जैन
The Iconic School, Bhopal
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