सहानुभूति कक्षा में सीखने-सिखाने की ज़मीन तैयार करती है-इस बात की प्रमाणिकता एक कहानी लेखन की कक्षा में यथार्थतः लागू होती है। जहाँ शिक्षार्थी कल्पना के पंखों पर सवार होकर अपनी अनोखी काल्पनिक दुनिया में विचरण करने लगते हैं। जहाँ वे स्वतंत्र हैं वो सब-कुछ करने के लिए, जो वे सोचते हैं।वो सब लिख सकते हैं जो वे लिखना चाहते हैं। कहानी के पात्रों के साथ जुड़कर उन मन की ग्रंथियाँ स्वतः ही खुलने लगती है। कहानी के सभी पात्रों की ज़बान पर उसके ही शब्द होते हैं। वही प्रश्नकर्ता है और वही उत्तर भी।‘एक योग्य और अनुभवी शिक्षक उसके लेखन को पढ़ने के साथ शिक्षार्थी को भी पढ़ लेता है’- यह कथन तब चरितार्थ हुआ जब जॉन ने विद्यालय की छटवीं कक्षा में प्रवेश लिया।
जॉन भोपाल आकर बहुत खुशथा। जब से उसका दोस्त आकाश भोपाल से घूमकर आया था और उसने झीलों के शहर-भोपाल की सुंदरता का बढ़-चढ़ कर बखान किया था। वह भी उसे देखने के लिए बेकरार होकर भोपाल जाने की ज़िद कर बैठा था। जॉय के पिता एक बैंक में मैनेजर थे। जब बैंक से लौटकर पिताजी ने कहा कि उनका तबादला भोपाल हुआ है और सब वहीं पर रहेंगे तो जॉय ख़ुशी से उछल पड़ा था। इससे पहले वह कभी भी दक्षिण भारत से बाहर नहीं गया था। आखिर अपने दोस्तों से विदा लेने का दिन भी आ गया। दोबारा मिलने के वादे के साथ उसने भारी मन से सबसे विदा ली।
इधर हवाई जहाज ने उड़ान भरी, उधर जॉन का मन भी कल्पना के पंखों पर सवार हो गया। बाहर के दृश्य बहुत लुभावने थे। नन्हे-नन्हे बादल नए-नए रूप धरकर आसमान में परीलोक रच रहे थे। कहीं दूर सफ़ेद पहाड़ों से निकलकर नदी बह रही थी तो कहीं बर्फ का महल सूर्य की किरणों से सतरंगी हो उठा था। अचानक जॉन की नज़र नीचे पड़ी और वह चिहुँक उठा- अरे, ये क्या! नीचे दूर-दूर तक बड़े तालाब का दूधिया उजला पानी सूर्य की सतरंगी किरणों से देदीप्तमान होकर चमक रहा था।भोज विमानतल से बाहर निकलते ही नया शहर उसे रोमांचित करने लगा। बड़े तालाब के किनारे झिलमिलाती रोशनी और राजा भोज की प्रतिमा ने उसकी उत्सुकता और बढ़ा दी थी।
अगला दिन एक नए विद्यालय में प्रवेश का दिन था। शिक्षिका ने उसका परिचय सहपाठियों से कराया और सभी छात्रों को शैक्षणिक भ्रमण के लिए- भोजपुर का शिव मंदिर, भीम बेटका और आदिवासी संग्रहालय ले जाने की जानकारी दी। शिक्षिका ने छात्रों को ग्रुपों में बाँट दिया। एक ग्रुप को योजना बनाने, दूसरे ग्रुप को तस्वीरें खींचने, तीसरे ग्रुप को आकस्मिक चिकित्सा तथा चौथे ग्रुप को अनुशासन का दायित्व दिया। जॉन की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसका सपना पूरा हो रहा था। भ्रमण के दौरान शिक्षिका ने पाषाणयुग के इतिहास तथा शैल चित्रों के निर्माण, आदिवासियों की जीवन शैली की विस्तृत जानकारी दी। सभी छात्र उसे नोट कर रहे थे।
अगले दिन हिंदी की कक्षा प्रारंभ हुई। अध्यापिका ने भ्रमण के दौरान देखे और सुने गए तथ्यों के आधार पर एक कहानी लिखने को कहा। जॉन हिंदी लिखने में बहुत घबराता है। सभी छात्र लिखने में व्यस्त थे पर जॉन चुपचाप बैठा हुआ था। शिक्षिका ने उसके पास जाकर हौले-से उसकी पीठ थपथपाई। सहानुभति पाकर जॉन ने बताया कि जब भी वह हिंदी लिखना प्रारंभ करता है, सभी मात्राएँ गड्ड-बड्ड होकर उसकी आँखों के सामने नाचने लगती हैं। शिक्षिका जानती थी कि अहिंदीभाषी के लिए हिंदी लेखन में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। उन्होने प्रेम से उसे सांत्वना दी और भ्रमण से प्राप्त अनुभवों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। जॉन ने धैर्यपूर्वक लिखना आरंभ किया। प्रकृति, प्राचीन इतिहास का ज्ञान, आदिवासियों की जीवंतता, विचारों की नवीनता, सकारात्मकता, शैक्षणिक भ्रमण से प्राप्त अनुभव की सीख और जोश- सब की झलक उसकी कहानी में दिखाई दे रही थी। थोड़ी-बहुत मात्राओं की अशुद्धियाँ थीं, जिन्हें जॉन ने जल्दी-ही अभ्यास द्वारा दूर करने का वचन दिया। यकीनन प्रेम और धैर्य से लक्ष्य की प्राप्ति संभव है।
कल्पना जैन, The Iconic School Bhopal
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