खेल मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। चाहे वह प्राचीन काल हो या आज का युग मनुष्य बचपन से ही खेल& खेलकर ही आगे बढ़ा है। खेल जन्म देता है उत्साह को और उत्साह
हमें जिज्ञासा की राह पर चल।ता है और यह जिज्ञासा जन्म देती है
महत्वाकांक्षा को कहा जाता है मनुष्य एक महत्वाकांक्षी प्राणी है जितना उसे मिलता है
वह उससे ज्यादा पाने की कोशिश करता है और एक तरह से आगे बढ़ने की यह लालसा उसके जीवन
को संपूर्ण एवं सुखद बनाती है और यही वजह है कि मनुष्य ने आदिम युग
को छोड़ नवीन युग में प्रवेश किया ।
जब हम बच्चों के स्तर पर खेलों के बारे में सोचते हैं तो हमें यह मालूम पड़ता है कि खेल एक सृजनात्मक सोच के स्रोत है । इन्हीं खेलों को खेलते खेलते कब एक बच्चा वैज्ञानिकता की राह पर निकल पड़ता है यह हमें भी पता नहीं चलता। विद्यालयों का कार्य केवल बच्चों को शिक्षा देना ही नहीं बल्कि संपूर्ण शिक्षा देना है। संपूर्ण शिक्षा से अर्थ है एक छात्र को पूर्ण रूप से सक्षम बनाना और यह तभी संभव है जब विद्यालयों में खेलों का महत्व समझा जाए।
जब छोटा बच्चा प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने विद्यालय में प्रवेश करता है वह कभी पढ़ाई से आकर्षित नहीं होता पर खेल ही है जो उसे विद्यालय से जोड़ते हैं। खेल एक छात्र को मानसिक एवं शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाते हैं । वहीं उसमें कई नैतिक गुण जैसे धैर्यपूर्ण रहना] कभी हार न मानना] अपनी काबिलियत पर विश्वास रखना और अपनी गलतियों से सीखना इत्यादि विकसित करते हैं पर आज जब हम देखते हैं तो समय के बदलाव के साथ खेलों में भी परिवर्तन आ चुका है । पहले जहाँ सितोलिया] कबड्डी इत्यादि खेल प्रचलित थे वही आज कंप्यूटर और मोबाइल फोन में खेले जाने वाले खेल बच्चों को लुभा रहे हैं।
जो खेल पहले सेहत] तंदुरुस्ती और चुस्ती&फुर्ती के प्रणेता थे वही आज बच्चों की बुरी सेहत के मुख्य कारण बन गए हैं पर हमारे विद्यालयों में आज भी वह पौराणिक खेलों की याद ताजा है। जब पढ़ाई में छात्र को नीरसता आ जाती है तब यही खेल जीवन में नए उत्साह का संचार करते हैं । उम्र का प्रभाव चाहे जो भी हो सभी के जीवन में खेल अति आवश्यक है।
जब हम बच्चों के स्तर पर खेलों के बारे में सोचते हैं तो हमें यह मालूम पड़ता है कि खेल एक सृजनात्मक सोच के स्रोत है । इन्हीं खेलों को खेलते खेलते कब एक बच्चा वैज्ञानिकता की राह पर निकल पड़ता है यह हमें भी पता नहीं चलता। विद्यालयों का कार्य केवल बच्चों को शिक्षा देना ही नहीं बल्कि संपूर्ण शिक्षा देना है। संपूर्ण शिक्षा से अर्थ है एक छात्र को पूर्ण रूप से सक्षम बनाना और यह तभी संभव है जब विद्यालयों में खेलों का महत्व समझा जाए।
जब छोटा बच्चा प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने विद्यालय में प्रवेश करता है वह कभी पढ़ाई से आकर्षित नहीं होता पर खेल ही है जो उसे विद्यालय से जोड़ते हैं। खेल एक छात्र को मानसिक एवं शारीरिक रूप से शक्तिशाली बनाते हैं । वहीं उसमें कई नैतिक गुण जैसे धैर्यपूर्ण रहना] कभी हार न मानना] अपनी काबिलियत पर विश्वास रखना और अपनी गलतियों से सीखना इत्यादि विकसित करते हैं पर आज जब हम देखते हैं तो समय के बदलाव के साथ खेलों में भी परिवर्तन आ चुका है । पहले जहाँ सितोलिया] कबड्डी इत्यादि खेल प्रचलित थे वही आज कंप्यूटर और मोबाइल फोन में खेले जाने वाले खेल बच्चों को लुभा रहे हैं।
जो खेल पहले सेहत] तंदुरुस्ती और चुस्ती&फुर्ती के प्रणेता थे वही आज बच्चों की बुरी सेहत के मुख्य कारण बन गए हैं पर हमारे विद्यालयों में आज भी वह पौराणिक खेलों की याद ताजा है। जब पढ़ाई में छात्र को नीरसता आ जाती है तब यही खेल जीवन में नए उत्साह का संचार करते हैं । उम्र का प्रभाव चाहे जो भी हो सभी के जीवन में खेल अति आवश्यक है।
राजेश्वरी राठौड़
rre4fab@gmail.com
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