शिक्षक एक कुम्हार की भाँति होती है जो विद्यार्थी रुपी घड़े को बनाने के लिए बाहरी हाथ से हल्की सी चोट भी देता है , लेकिन घड़े के अंदर यानी हमारी आत्मा को भी सहारा देता है ।
एक बार एक कक्षा में सभी विद्यार्थी जब अध्यन कर रहे थे । तभी अगले विषय का समय आरम्भ होने पर शिक्षक कक्षा में से
चले गए तथा सभी विद्यार्थी एक दूसरे से बात करने में लीन हो गए यह वार्ता कब युद्व में परिवर्तित हो गई इस बात का पता विद्यार्थियों को नहीं लगा । सब एक दूसरे से लगातार बहस करते जा रहे थे । बहस ये थी कि हर कार्य में बालिकाएं ज्यादा तेज हैं या बालक, धीरे धीरे यह झगड़ा युद्ध मे परिवर्तित हो गया । उनको पता ही न चला कि अध्यापिका कब कक्षा में प्रवेश कर गई वह शांति के साथ उनके झगड़े को देख रही थी और समझने का प्रयास कर रही थी कि आखिर क्या हो रहा है ? अचानक से बच्चों की नज़र अध्यापिका पर पड़ी और सब धीरे धीरे अपनी जगह पर बैठ गए । उन्होंने शांत भाव से बच्चों से पूछा कि ,’क्या हुआ और आप सब इतनी तेज तेज़ झगड़ा क्यों कर रहे थे ।‘ सबसे पहले तो बच्चों ने उनसे माफी मांगी और फिर झगड़े का कारण बताया , कारण जान कर अध्यापिका ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी फिर उन्होंने विद्यार्थियों को समझाया कि सभी मनुष्य के अंदर अपने कुछ खास गुण होते हैं जिनके चलते वह सभी अपनी पहचान किसी न किसी रूप में अवश्य बनाते हैं , जैसे यहां से शिक्षा प्राप्त कर कोई गायक बनेगा कोई खिलाड़ी तो कोई डॉक्टर बनेगा और कोई कुछ और व्यवसाय चुनेगा जिसमें की वह निपुण होगा । इसलिए कभी भी किसी को नीचा या कम नहीं समझना चाहिए ।अध्यापिका की समझदारी वाली बातें सुनकर सभी विद्यार्थि शर्मिंदा भी हुए और उन्होंने शिक्षिका से अपने व्यवहार की एक बार फिर से माफी मांगी ।
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इस कहानी की महत्वपूर्ण विशेषता यह है की प्रत्येक शिक्षक में धैर्यता को होना अत्यंत आवश्यक है । इसी धैर्य की वजह से शिक्षिका ने कक्षा की युद्ध पूर्ण स्थिति को शांति से हल कर दिया ।
एक अच्छा शिक्षक हमारी समस्याओं का समाधान ही नहीं करता , बल्कि उस समस्या से कैसे निबटा जाए यह भी सिखाता है ।
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