लेखन
विचारों को व्यवस्थित
करने का तरीका
है। इसके द्वारा अपने विचारों
को व्यवस्थित करके
प्रकट करता है
। यह छात्र के मानसिक
विकास बुद्धिमता को
प्रेरित-उत्प्रेरक करने वाले करने वाली
प्रक्रिया है। यह समालोचनात्मक
विचारों की एक प्रक्रिया है। जिसमें नए ज्ञान
को अपने स्वयं के अनुभव से मिश्रित करते हुए
एक नई अवधारणा या विचार को प्रकट किया जाता है। जो कि पूर्ववर्ती विचारों से अधिक परिष्कृत विचार होता है। प्रमाण है कि जो छात्र लेखन का अभ्यास अधिक करते
है, उनमें विवेक और
विश्लेषण की उच्च
क्षमता
पाई जाती हैं
।
लेखन
बच्चे में तंत्रिका
तंत्र के विकास
और धैर्य को
भी प्रभावित करता
है । क्योंकि लेखन में
जो पूर्ववर्ती क्रियाएँ
है जैसे
कि रंग भरनाS] चित्रांकन करना के
द्वारा छात्र वर्णों की घुमावदार आकृतियाँ शीघ्रता से
सीखता है।
वर्तमान समय में छात्र लेखन का
अभ्यास करने के बजाए कंप्यूटर व टेबलेटस से ज्ञान अर्जन का प्रयास अधिक कर रहे हैं। जिसमें भी की बोर्ड संचालन में प्रवीणता से अभ्यास
द्वारा ज्ञान अर्जित किया जाता
है।
उसी प्रकार लेखन में भी निरंतर
अभ्यास की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्ण की संरचना जटिल होती है। जिसको की पूर्ण करने में एक जटिल तंत्रिका तंत्र
को कार्य करना पड़ता है। जिसके लिए शारीरिक
विकास की अत्यधिक आवश्यकता होती है। वे
छात्र जिन्हें घर पर खेलने का या व्यायाम करने
का अवसर प्राप्त नहीं होता है वे विद्यालय छात्र के रूप में अधिक सफल नहीं हो पाते
हैं।
अतः पूर्व प्राथमिक विद्यालय में
खेलकूद और व्यायाम पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। उसके पश्चात लेखन में रुचि जागृत करने हेतु सर्वप्रथम रंग भरने अधूरी लाइन पूरी
करते हुए चित्र बनाना आदि कार्य करवाने से उनके हाथों और उंगलियों की मांसपेशियों का
मस्तिष्क के साथ सामंजस्य स्थापित हो जाता
है उसकी और लेखन में रुचि जागृत हो जाती है।
- Rajeshwari Rathore, The Fabindia School
- Rajeshwari Rathore, The Fabindia School
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