एक अच्छा वक्ता वहीं बन सकता है
जो अच्छा श्रोता होता है, इसलिए सिर्फ बोले नहीं बल्कि सामने वाले की बातों को ध्यान
से सुने और उसमें रुचि भी लें। हमेशा अपनी बात कहते समय प्वॉइंट टू प्वॉइंट का तरीका
अपनाएं, ताकि सामने वाला आपकी बात आसानी से समझ जाए। सामने वाले को बातों में उलझाने
की कोशिश न करें। हर शख्स से बात करने का अलग तरीका होता है, इसलिए जब भी आप
किसी से बात करें तो उसकी उम्र और प्रोफेशन का ध्यान अवश्य रखें। जब आप
किसी छोटे बच्चे से बात कर रहें है तो उसका तरीका अलग होता है। किसी छोटे बच्चे से
बात करने में सरल शब्दों का प्रयोग करना चाहिए एवं कम शब्दों में अपनी बात बोलनी चाहिए।
सीधी एवं सटीक भाषा में बोलना चाहिए। कभी भी ज्यादा घूमा-फिराकर किसी से कोई भी बात
नहीं करें।
जब भी आप किसी से कुछ बोल रहे हो, उस समय सही शब्दों
का चयन करें। कभी भी सस्ते एवं काम चलाऊ शब्दों को अपनी बातों में शामिल न करें। क्योंकि
जब आप अच्छे और इम्प्रेसिव शब्दों का चयन करेंगे तब लोग आपकी बातों को ध्यान से और
रुचिपूर्वक सुनेंगे। अगर हम पढ़ेंगे तो हम बोलने में सक्षम बनेंगे और हमारा आत्मविश्वास
बढ़ेगा। हम दूसरों को पढ़े गए विषय पर बोलकर समझा सकेंगे। लगातार अलग- अलग विषय
पर बोलते रहने से अलग-अलग लहजे में बोलने की क्षमता का विकास होगा। सुनकर बोलने की
शक्ति बढ़ेगी, क्योंकि छोटे बच्चे सुनी हुई बात को जल्दी समझेंगे और उसके बारे में और
ज्यादा जानने के लिए प्रश्न भी पूछेंगे इससे उनकी बोलने की क्षमता बढ़ेगी। वे अपने मन
की बात को बोलकर अपने भाव प्रकट कर सकेंगे।
Ayesha Tak, The Fabindia School
atk4fab@gmail.com
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