जब मैं अपने सबसे अच्छे रूप में अध्यापन कर रही हूँ , तो मैं अपने आप को एक 'सच्चे मित्र' के रूप में देखना चाहूँगी । क्योंकि मित्रता एक ऐसा रिश्ता है , जो जन्म से नहीं होता, बल्कि हम उसे अपनी पसंद से अपनाते हैं। हम अपनी वे सभी बातें जिन्हें अपने माता-पिता से शेयर नहीं करते, वे सभी अपने मित्र के सामने निसंकोच प्रकट करके अपने आप को तनाव मुक्त कर लेते हैं । सच्चा मित्र आँखें बंद करके हर जगह अपने मित्र का साया ही नहीं बनता, बल्कि उसका हमराह और रक्षक बनकर सदैव उसके साथ खड़ा रहता है। मित्र की सही बात पर समर्थन करता है तो गलत बात पर उसका विरोध भी करता है। गलत आदतों, गलत विचारों और गलत तरीकों से उसे सचेत और आगाह भी करता है। अवसर आने पर दीप की तरह प्रज्वलित होकर उसका पथ- प्रदर्शन और पथ- संचालन भी करता है । सही दिशा का ज्ञान कराता है। सही बात पर समर्थन करता है, तो गलत बात पर उसके विपरीत भी जाकर उसे प्यार से सही-गलत की पहचान कराता है ।जो निष्पक्ष होता है। सुख-दुख दोनों ही परिस्थितियों में सदैव हर हाल में अपने मित्र के साथ खड़ा रहता है। जो कभी भी अपने मित्र का विश्वास नहीं तोड़ता। सीखने में उसके मौजूदा ज्ञान, कौशल और अनुभवों में वृद्धि करके नए दृष्टिकोण को प्राप्त करने में उसकी मदद करता है। बातचीत की यह प्रक्रिया सीखने में मुख्य भूमिका निभाती है, क्योंकि इससे छात्रों को उनके विचारों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने की प्रेरणा मिलती है ।आपसी बातचीत के द्वारा उन्हें नई बातें सीखने में मदद मिलती है । छात्रों की बातचीत का उपयोग उनकी समझ और प्रगति के मूल्यांकन के एक साधन के रूप में करके उसके अनुसार अपनी अध्यापन योजनाओं में बदलाव करता है।अपने नियमित कक्षा शिक्षण के दौरान भाषा सीखने का आकलन कैसे करें? इस पर विचार करता है । हमेशा अपने छात्रों को बोलने और सुनने के अच्छे नमूने देने की कोशिश करके स्पष्ट रूप से बात करके स्वस्थ वातावरण का निर्माण करता है। उत्तर देने वालों के साथ दृष्टि संपर्क बनाकर प्रश्न पूछकर उनके उत्तरों के माध्यम से उनकी रुचियों को जानता है और उन्हें उसे व्यावसायिक रूप से अपनाने की प्रेरणा देकर उसकी सफलता सुनिश्चित करता है।
- Kalpana Jain, educator at The Iconic School
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