बच्चे छोटी-छोटी गलतियाँ करते है, अध्यापक द्वारा उन गलतियों को यदि नज़रअंदाज़ किया जाए तो भविष्य में एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आ सकती है। इन छोटी गलतियों से कक्षा के अनुशासन पर भी प्रभाव पड़ सकता है। अर्थात अध्यापक को पैनी निगाह रखना अत्यावश्यक है। जहाँ आवश्यकता प्रतीत हो छात्रों को दिशा-निर्देश भी देते रहना चाहिए। ये गलतियाँ कहीं भी किसी भी रूप में हमारे सामने उपस्थित हो सकती हैं। कक्षा-कक्ष में, खेल के मैदान में, मध्यांतर के समय इत्यादि। लेखन में छात्र कई छोटी-छोटी गलतियाँ कर जाते है, इन गलतियों का सुधार होना ज़रूरी है अन्यथा बालक अपने मन में ये धारणा बैठा सकता है कि उसने जो लिखा है वही शुद्ध है। अधिकांशतः हिंदी लेखन के समय ऐसी गलतियाँ हो सकती है।
वर्णों की बनावट, मात्रा सम्बन्धी त्रुटि या अनुस्वार आदि की त्रुटि होने की अधिक संभावना रहती है, ऐसे में अध्यापक की सतर्कता आवश्यक हो जाती है। उच्चारण में भी बालक गलतियाँ कर सकते हैं, ऐसा हिंदी, अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में भी हो सकता है। अध्यापक का उच्चारण ठीक हो, बच्चे सुनकर अधिक सीखते है और समय-समय पर छात्रों को भी इस सम्बन्ध में निर्देश देते रहें। ठीक इसके विपरीत कई बार अध्यापक भी कई छोटी-छोटी बाँतों को नज़रअंदाज़ कर जाते है परन्तु उनके छात्र चंचल होते हैं, वे उनकी भूलों को स्वयं अपना लेते हैं। इस कारण भी अध्यापक को सतर्क रहना पड़ता है। किसी भी परिस्थिति में कुछ भी भूल न हो ऐसा प्रयास करें। कभी-कभार त्रुटि हो सकती है, यदि बार-बार त्रुटियाँ होगी तो वह निःसंदेह बड़ा रूप ले सकती है, जो छात्रों के लेखन को प्रभावित करेगी।
हमारी सीख -आइसक्रीम मेकर से, लेखक- सुबीर चौधरी
समूह सदस्य- बायजु जोसफ़, कविता देवड़ा, कृष्ण गोपाल - The Fabindia School
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