रचनात्मकता का अर्थ है - प्रत्येक कार्य को सच्चे दिल से करना। रचनात्मकता हरपल कुछ नया सीखने एवं प्रत्येक कार्य को उत्साह के साथ बेहतर तरीके से करने की आदत है।
इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षण में नवीनतम और रुचि पूर्ण शिक्षण पद्धति अपनायी जाए - जैसे भ्रमण-विधि, खेल-विधि, कहानी-विधि, प्रदर्शन-विधि, करके सीखना, केश-स्टडी विधि (छात्रों की भिन्नता को शिक्षण में महत्व देना) या योजना विधि।
क्रिया में परिवर्तन होते रहना प्रकृति का नियम है। अर्थात किसी काम को करने में अलग-अलग युक्ति लगाना। परिवर्तन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होते है, इन्हीं परिवर्तनों से नवीनता आती है। अतः अपने शिक्षण-कार्य में भी परिवर्तन के साथ नवीनता लाने का प्रयास किया जाए।
जैसे-शिक्षा बाल-केंद्रित होनी चाहिए और शिक्षक केवल सुविधादाता की भूमिका निभाता है। ज्ञान को विद्यालय के बाहर के वातावरण से जोड़ना। पाठ्यक्रम में ऐसी कहानी रखना जिसका अंत न हुआ हो, बच्चे अपने अंदाज़ से उसका अंत करे।
एक बच्चे का सीखा हुआ ज्ञान तभी सार्थक होता है जब वह किसी चीज़ को स्वयं करके सीखे। इसी स्वयं करने के क्रम में बच्चे कई चीजों का निर्माण करते है जो नितांत उनकी है, उसका उनके अपने लिए काफ़ी महत्व होता है।
इसके अतिरिक्त अपने सहयोगी शिक्षकों से भी नए विचार लिए जा सकते है। विचार सबसे लिए जा सकते है परन्तु स्वयं मनन करके ही उपयोग में लिया जाए। छात्रों से भी विचार लिए सकते है, वे भी नए-नए विचार प्रस्तुत करेंगे, कुछ ठीक होंगे, कुछ नहीं। हर विचार का सम्मान करें चाहे कोई विचार महत्व का है या नहीं और ऐसे विचारों को संग्रहित करें। इनमें हरेक पर चिंतन किया जाए और उपयोगी विचार को क्रियान्वित भी किया जाए। अच्छे विचार प्रस्तुत करने वाले को पुरस्कृत भी किया जाए।
भाषा-शिक्षण इस क्षेत्र में विशेष योगदान देता है। कहानी, गीत या कविता सुनकर बच्चे स्वयं कुछ करने की दिशा में प्रवृत्त होते हैं। उनको इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अपनी पाठ्यपुस्तक के पाठों का भी उचित नियोजन कर रचनात्मकता की ओर अग्रसर किया जा सकता है।
हमारी सीख- आइसक्रीम मेकर से - विनीत सिंह, बायजु जोसफ, कविता देवड़ा, कृष्ण गोपाल
The Fabindia School
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